‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म देखकर थिएटर से निकलते दर्शक सिर्फ ग़मज़दा नहीं दिखते, उनमें गुस्सा भी नज़र आता है और नफ़रत की भावना भी। यह नफ़रत सिर्फ हिंसा और हिंसा फैलाने वालों के खिलाफ हो तो मकसद बड़ा हो जाता है।
द कश्मीर फाइल्स : कश्मीरी पंडितों के दर्द को राजनीतिक रूप से बेचने की कोशिश
- विचार
- |
- |
- 15 Mar, 2022

कश्मीरी पंडितों के कत्लेआम और विस्थापन पर बनी फिल्म द कश्मीर फाइल्स जोरदार चर्चा में है। क्या इससे किसी को राजनीतिक फायदा हो रहा है?
लेकिन, एक दर्शक के तौर पर ऐसा महसूस होता है जैसे हम धर्म विशेष के खिलाफ नफ़रत की भावना लेकर थिएटर से निकल रहे हों। फिल्म के निर्माता निर्देशक विवेक अग्निहोत्री और पल्लवी जोशी हैं। अन्य कलाकारों में अनुपम खेर, मिथुन चक्रवर्ती, दर्शन कुमार, पल्लवी जोशी, भाषा सुंबली और चिन्मय मंडलेकर शामिल हैं।
आम तौर पर फिल्में समाज को शांति, सौहार्द्र, भाईचारा बढ़ाने और नफरत मिटाने का संदेश देती है। लेकिन, इस फिल्म को देखकर ऐसा संदेश मिलता नज़र नहीं आता। रालिव, त्सालिव या गालिव के गिर्द संदेश देने की कोशिश की गयी है जिसका मतलब होता है मुसलमान बनो या मरो या कश्मीर छोड़ो।
आतंकियो ने कश्मीरी पंडितों को कश्मीर छोड़ने के लिए इसी नारे का इस्तेमाल किया था। खुलेआम मस्जिद से कश्मीर पंडितों के लिए कश्मीर छोड़ने या फिर जान गंवाने की चेतावनी जारी की जाती दिखायी गयी है। यहां तक कि मुस्लिम महिलाओं को भी कश्मीरी पंडित महिलाओं के हिस्से का अनाज उन्हें नहीं देने और उन्हें खदेड़ने पर आमादा दिखाया गया है।