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कोरोना संकट के बीच मुसीबतों को और बढ़ा सकता है टिड्डियों का आक्रमण

पूरे राजस्थान से लेकर हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में भारी संख्या में टिड्डी सेना का आक्रमण कोई छोटी घटना नहीं है। भारत समेत एशिया और अफ्रीका के कई देशों के इतिहास में ऐसे बहुत से मौके आए हैं जब टिड्डी सेना यानी ‘डेजर्ट लोकस्ट’ के ऐसे ही आक्रमण की वजह से भीषण अकाल पड़े हैं। टिड्डी दल जब हमला बोलते हैं तो आस-पास कुछ नहीं, बस टिड्डियां ही दिखती हैं। 

अनुमान है कि ऐसे मौकों पर एक वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में चार से आठ करोड़ तक टिड्डियां हो जाती हैं। इतनी टिड्डियां एक दिन में जितनी वनस्पति चट कर जाती हैं उससे 35,000 लोगों का पेट भरा जा सकता है। इसे दूसरी तरह से देखें तो एक करोड़ टिड्डियां एक दिन में 10 लाख टन तक हरियाली चबा सकती हैं। 

टिड्डियों का भारत में पिछला बड़ा हमला 1993 में हुआ था। हालांकि यह माना जा रहा है कि इस बार का हमला उससे भी बड़ा है, शायद उतना बड़ा जितना कि 1962 में हुआ था।

पहले से बेहाल है अर्थव्यवस्था 

इस बार खास चीज यह आक्रमण नहीं है बल्कि वे परिस्थितियां हैं जिनके बीच यह आक्रमण हुआ है। कोरोना वायरस के संक्रमण और लाॅकडाउन की वजह से पूरी अर्थव्यवस्था गोता लगा चुकी है और कृषि व ग्रामीण क्षेत्र का तनाव चरम पर है। ऐसे में खाद्य उत्पादन और किसानों की आमदनी पर पड़ने वाला कोई भी उल्टा असर तमाम नई समस्याओं को जन्म दे सकता है। इन समस्याओं को हमें एक दूसरे ऐतिहासिक तथ्य से भी देखना होगा। 

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देश की एक बड़ी आबादी को शिकार बनाने वाले 1896 में फैले प्लेग रोग के बाद जब वैज्ञानिकों ने उसका विश्लेषण किया तो वे इस नतीजे पर पहुंचे कि प्लेग की वजह से भारत में जिंदगियों का नुक़सान इसलिए भी ज्यादा हुआ क्योंकि प्लेग ने उस समय दस्तक दी, जब देश के कई हिस्सों में भीषण अकाल पड़ा था। 

कुपोषण की वजह से लोगों की इम्युनिटी काफी कम थी इसलिए वे न सिर्फ प्लेग से आसानी से संक्रमित हुए बल्कि भारत में जान भी दुनिया के बाकी देशों के मुक़ाबले ज्यादा संख्या में गई।

कोरोना वायरस जैसी नहीं हैं टिड्डियां 

यहां एक चीज का और ध्यान रखना होगा कि टिड्डियां कोरोना वायरस जैसी नहीं हैं। कोरोना वायरस जिस तरह से आया, उसकी हम पहले से भविष्यवाणी नहीं कर सकते थे। यह अदभुत, अपूर्व, अदृश्य सा वायरस पहली बार इस धरती पर उत्पात मचा रहा है और हम अभी तक ठीक तरह से नहीं जानते कि उसका मुकाबला कैसे करना है। जबकि टिड्डियां न तो अपूर्व हैं और न ही अदृश्य। उनसे निपटने के हमारे अनुभव सदियों पुराने हैं। 

देश के कृषि मंत्रालय के तहत टिड्डियों के खतरों की भविष्यवाणी करने के लिए बाकायदा एक संगठन है। यही नहीं, विश्व खाद्य व कृषि संगठन के पास भी उनके हमलों की भविष्यवाणी की संस्थागत व्यवस्था है।

समय रहते नहीं बनाई गई योजना

टिड्डियों के ख़तरों की भविष्यवाणियां हो भी रहीं थीं। खाद्य व कृषि संगठन ने कई महीनों पहले ही कह दिया था कि बारिश ज्यादा होने के कारण टिड्डियों की प्रजनन दर इस बार काफी अधिक रही है। फरवरी की शुरुआत में ही संगठन के ‘टिड्डी भविष्यवाणी विभाग’ के वरिष्ठ अधिकारी कीथ क्रेसमैन ने ‘डाउन टू अर्थ’ पत्रिका को दिए गए एक इंटरव्यू में कहा था कि यह ऐसा मामला है जिस पर भारत को अगले कुछ सप्ताह तक लगातार नजर रखनी होगी। यानी यह उस समय की बात है, जब कोरोना वायरस का खतरा इस तरह से नहीं था और भारत के पास तैयारियों का पर्याप्त समय था।

वैसे भी ये टिड्डियां सीधे अफ्रीका से उड़कर भारत नहीं आतीं। वे ईरान और पाकिस्तान होते हुए आती हैं, जहां उनकी पहली और दूसरी पीढ़ी जन्म लेती है। इस दौरान हर पीढ़ी में उनकी संख्या बीस गुना बढ़ जाती है। यानी जब उन्होंने पाकिस्तान पहुंचना शुरू किया, भारत को उसी समय सचेत और सक्रिय हो जाना चाहिए था।

भारत में इसकी भविष्यवाणी के लिए बना संगठन भी हर साल रस्म अदायगी करता रहता है। कृषि व किसान कल्याण मंत्रालय के तहत आने वाले वनस्पति संरक्षण, संगरोध एवं संग्रह निदेशालय के पास इसका जिम्मा है। निदेशालय के फरीदाबाद कार्यालय ने 2019 में टिड्डियों को लेकर अपना कंटिंजेंसी प्लान जारी किया था। 

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तमाम औपचारिक बातों के अलावा इस प्लान में ऐसे विमानों की खरीद की योजना भी शामिल है जिससे टिड्डियों के हमले की सूरत में उन पर कीटनाशकों का छिड़काव किया जा सके। दुनिया भर में इसी तरीके को सबसे प्रभावी माना जाता है। ऐसी ही योजनाएं आपको पुरानी रिपोर्टों में भी मिल सकती हैं। 

सरकार से उम्मीद करना बेकार

इस बार जब टिड्डियों का हमला हुआ है तो भी उसी पुरातन संकल्प को दोहराया गया है। ऐसे विमान कब खरीदे जाएंगे कोई नहीं जानता। दूसरी तरफ, हालत यह है कि कुछ राज्यों में सरकारें टिड्डियों को भगाने के लिए किसानों को थाली, ढोल, नगाड़े वगैरह पीटने की सलाह दे रही हैं। जो व्यवस्था टिड्डियों से नहीं निपट पा रही, उससे यह उम्मीद कैसे की जाए कि वह कोरोना जैसी कहीं अधिक जटिल समस्या से कुशलता के साथ निपट लेगी।

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क़मर वहीद नक़वी
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