भारत का चुनावी परिदृश्य बूथ कैप्चरिंग से ईवीएम कैप्चरिंग में अपडेट हो चुका है, लेकिन उम्मीदवारों के चयन का क्राइटेरिया जरा भी अपडेट नहीं हुआ है। अगर उम्मीदवार चुनाव जीत सकने में सक्षम है, तो उसके ख़तरनाक चाल-चरित्र और चेहरे को नजरअंदाज कर दिया जाएगा। लगभग यही छोटे-बड़े हर राजनीतिक दल का पैमाना है।
क्या सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दागियों को टिकट नहीं देंगी पार्टियां?
- विचार
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- 3 Mar, 2020

चुनाव में उम्मीदवारों का चयन सिर्फ़ एक योग्यता पर होता है कि वे बस किसी भी क़ीमत पर जीत सकते हों भले ही वे दागी ही क्यों न हों। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इसे लेकर सख़्ती दिखाई है।
कुछ दशक पहले तक राजनीतिक दलों को आंखों की शर्म थी इसलिए वे अपराधियों और गुंडे-मवालियों को पृष्ठभूमि में रख कर उनकी मदद लिया करते थे, लेकिन आज सूरते हाल यह है कि प्रमुख दलों का टिकट पाकर अपराधी सीधे चुनावी अखाड़े में उतरते हैं और धनबल व बाहुबल की धौंस दिखाकर संसद और विधानसभाओं में पहुंच जाते हैं तथा पूरे देश की जनता के भाग्यविधाता बन बैठते हैं।
विजयशंकर चतुर्वेदी कवि और वरिष्ठ पत्रकार हैं। उन्होंने कई मीडिया संस्थानों में काम किया है। वह फ़िलहाल स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता करते हैं।