किसी भी बीमारी के संदर्भ में आदर्श वाक्य है - ‘सावधानी और रोकथाम ही सुरक्षा है।’ लेकिन COVID-19 यानी कोरोना वायरस के मामले में यह आदर्श वाक्य एक लाचारी बन गया है। क्योंकि इस वायरस से बचने का कारगर टीका या दवा की टिकिया दुनिया का कोई भी आविष्कारक अब तक विकसित नहीं कर पाया है। तथ्य यह भी है कि इस वायरस को झेलने या उपचार करने का किसी जीवित व्यक्ति को अनुभव नहीं है। इसीलिए दुनिया भर के चिकित्सक कोई दवा खाने की नहीं बल्कि मात्र सावधानी बरतने की सलाह ही दे पा रहे हैं।
दूसरे देशों से आए या लाए गए लोगों को क्वारेन्टाइन और आइसोलेट करना ही इसके प्रसार को रोकने का उपाय बताया जा रहा है। यह उम्मीद तो है कि टीका और दवा बना ली जाएगी लेकिन तब तक यह वायरस दुनिया की आबादी के एक बड़े हिस्से को संक्रमित कर चुका होगा और लाखों लोगों को लील चुका होगा!
ये सावधानियां ज़रूर रखें
विश्व स्वास्थ्य संगठन, पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड और नेशनल हेल्थ सर्विस (एनएचएस) ने गाइडलाइन जारी की है कि कोरोना वायरस से बचने के लिए समय-समय पर अपने हाथ अच्छी तरह धोएं। खांसते या छींकते समय अपना मुंह ढक लें। अपनी आंखों, नाक और मुंह को बिना हाथ धोए छूने से बचें। हो सके तो ऑफ़िस का काम घर से करें। स्कूल या सार्वजनिक जगहों पर बिना किसी काम के न जाएं। सार्वजनिक वाहन जैसे बस, ट्रेन, ऑटो या टैक्सी से यात्रा करने से बचें। कोशिश करें कि घर में बिना किसी वजह मेहमानों को न बुलाएं। अपने कमरे, रसोई और बाथरूम को साफ रखें। यदि कोई व्यक्ति किसी संक्रमित इलाक़े, शहर या देश से आया है तो उसे अकेले रहने की सलाह दी जा रही है।
सामर्थ्यवान मनुष्य यह सब कर लेगा लेकिन सामान्य और ग़रीब व्यक्ति घर में कैसे पड़ा रह सकेगा? किसी मजदूर को आप मजदूरी करने से कैसे रोकेंगे? किसी होटल या ढाबे को क्यों बंद करेंगे? फल-फूल बेचने वालों, ब्रेड-दूध-सब्जियां-अखबार बेचने वालों, रेहड़ी-पटरी वालों को ठेले न लगाने के लिए कैसे मनाएंगे? किसी डॉक्टर या पत्रकार को काम पर निकलने से कैसे रोकेंगे?
दुनिया भर में सबसे बड़ा भय यह पसर चुका है कि वर्तमान में इस वायरस की कोई दवा नहीं है! यह एक ऐसा दैत्य है जो एक बार संपर्क में आने पर जिंदा नहीं छोड़ेगा।
एक अनुमान के मुताबिक़, दुनिया के 120 से ज़्यादा देशों में लगभग 7500 से ज़्यादा लोग कोरोना वायरस के चलते मारे जा चुके हैं और इनमें से 3,200 से ज़्यादा लोग सिर्फ चीन में ही मारे गए हैं। चीन में मौतों का सिलसिला अब भी थमा नहीं है। कोरोना के कहर से हर देश में जो सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक उथल-पुथल मची है, वैसी पहले कभी नहीं देखी गई। यहां तक कि ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय को बर्मिंघम पैलेस छोड़कर कहीं ज्यादा सुरक्षित विंडसर कासल में शरण लेनी पड़ी है!
पिछले कुछ दिनों से यूरोप के करीब 20 देशों में यूनिवर्सिटीज, स्कूल, एम्यूजमेंट पार्क और म्यूजियम को बंद करने के साथ-साथ सार्वजनिक समारोहों को रद्द किया जा रहा है। सिर्फ एक ही दिन में 368 नागरिकों की मौत देखने के बाद फार्मेसी और सुपरमार्केट को छोड़कर इटली की मशहूर सड़कें और फेमस पिज्जा की दुकानें अब वीरान हो चुकी हैं।
‘वर्क फ्रॉम होम’ का क़दम
अमेरिका, अफ्रीका, खाड़ी देशों और कई अन्य देशों के कुछ अहम शहरों में लॉकडाउन जैसी स्थिति देखी जा रही है। स्कूलों के साथ-साथ पब्लिक और निजी संस्थानों को बंद किया जा रहा है। आशंका है अब आर्ट गैलरियों, कैसिनो, नाइट क्लब, डांस बार, कैफेटेरिया, सरकारी कार्यालयों आदि को भी धीरे-धीरे बंद कर दिया जाएगा। गूगल और अमेजन जैसे इंटरनेशनल कॉरपोरेट अपने अधिकतर कर्मचारियों से पहले ही ‘वर्क फ्रॉम होम’ करवा रहे हैं।
मनुष्य जाति के इतिहास में युद्ध या नरसंहार, नागरिक संघर्ष, महामारी, अकाल, बाढ़, भूकंप और अन्य प्राकृतिक आपदाओं से हुई मौतों के आंकड़े अनंत हैं। प्रथम विश्व युद्ध में लगभग 4 करोड़ लोगों की मृत्यु होने का अनुमान लगाया जाता है। इसी तरह दूसरे विश्व युद्ध में करीब 10 करोड़ लोगों के मारे जाने की बात कही जाती रही है। उन मामलों में दुश्मन दृश्यवान था। उसका सामाजिक, आर्थिक या सैन्य इलाज किया जा सकता था।
‘अदृश्य’ दुश्मन है कोरोना
स्पेनिश इन्फ्लुएंजा, चेचक, पोलियो, इंसेफेलाइटिस, एड्स, स्वाइन फ्लू या बर्ड फ्लू के मामलों में मच्छर, बंदर, सुअर या पक्षियों को वायरस का वाहक मान कर उनका सफाया किया गया और प्रतिरोधी वैक्सीन बना ली गईं। लेकिन कोरोना दुश्मन अदृश्य है और यह बिना चेतावनी दिए, बिना पहचान में आए और मामूली जुकाम या बुखार के लक्षण दिखाकर ही लोगों को गिरफ्त में ले रहा है। यह पकड़ से बाहर है और इसीलिए बेहद खतरनाक और प्रलयंकर बन गया है।
अभी मात्र यह अनुमान ही है कि पहले यह वायरस मात्र जंगली जानवरों में होता था लेकिन इन जानवरों के प्राकृतिक आवास नष्ट हो जाने के चलते यह मनुष्यों की आबादी में प्रविष्ट हो गया। एक कयास यह भी है कि इसे जैविक हथियार के रूप में किसी साम्राज्यवादी देश ने विकसित किया है।
पड़ोसियों को भी मदद दे रहा भारत
भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जिसने अपने नागरिकों को 6 से ज्यादा बार विदेशों से निकाला है। यही नहीं भारत ने चीन को मास्क, दस्ताने और अन्य आपातकालीन चिकित्सा उपकरणों सहित 15 टन चिकित्सकीय सहायता भी प्रदान की है। भारत ने मालदीव के स्वास्थ्य अधिकारियों की सहायता के लिए पल्मोनोलॉजिस्ट, एनेस्थेटिस्ट, फिजिशियन और लैब टेक्नीशियन भेजे हैं। यानी भारत इस वायरस की रोकथाम में पड़ोसी देशों की भी मदद कर रहा है।
कैसे मुक़ाबला करेगा भारत?
फिलहाल भारत में मौतों का आंकड़ा भयावह नहीं है। एहतियात के तौर पर भारत के लगभग हर राज्य में स्कूल, कॉलेज, पुस्तकालय, सिनेमा हॉल, मैरिज हॉल, चिड़ियाघर, फिल्मों की शूटिंग, परीक्षाएं आदि बंद या स्थगित हैं तथा न्यायालयों का कामकाज सीमित कर दिया गया है। लेकिन लोग यकीनन यह सोचने लगे हैं कि जब चीन, यूरोपीय यूनियन और अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश इस वायरस का मुकाबला कर पाने में अक्षम हैं तो भारत जैसे लगभग सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा वंचित देश इसका कैसे मुकाबला करेंगे!
भारत में संक्रमित मरीजों की संख्या कम दिखने की एक वजह यह भी हो सकती है कि अब तक कुछ हजार लोगों का ही परीक्षण हुआ है और यह परीक्षण भी कुछ हवाई अड्डों और बंदरगाहों पर विदेश से आने वाले व्यक्तियों तक ही सीमित है।
एक दिक्कत यह भी है कि भारत में लोग हाईजीन का ख्याल रखना लगभग भूल चुके हैं, जिससे अक्सर मामूली जुकाम भी महामारी की शक्ल ले लेता है। नागरिकों की जागरूकता का स्तर भी यह है कि वे खाट पकड़ लेने से पहले डॉक्टर के पास जाने से कतराते हैं।
वर्तमान परिस्थितियों से घबरा कर अगर कोई कोरोना संक्रमण का परीक्षण कराना भी चाहे तो देश में जिला स्तर भी कोई केंद्र ढूंढे नहीं मिलेगा। वेंटीलेटर और श्वसन संबंधी आपात प्रबंधन तो दूर की कौड़ी है।
भारत के कई जिले छोटे-मोटे देशों से बड़े होते हैं। ऐसे में 50-60 लाख की आबादी को एकाध सेंटर कैसे संभालेगा? कोढ़ में खाज यह है कि हमारे देश में अहंकारी नीम हकीमों और गाय-गोबर वाले विशेषज्ञों की भरमार है, जो कुदरती कहर को भी अपनी मूर्खताएं प्रदर्शित करने का जरिया बना लेते हैं और मासूम लोगों को भ्रमित करके उनकी बीमारियां असाध्य व जानलेवा बना देते हैं।
भारत में कोरोना के प्रवेश का यह शुरुआती चरण है। इसे यहीं रोकना होगा। नेशनल हेल्थ सिस्टम्स रिसोर्स सेंटर, दिल्ली के पूर्व प्रमुख और स्कूल ऑफ़ हेल्थ सिस्टम्स स्टडीज, टीआईएसएस मुंबई के डीन रह चुके टी. सुंदरारमन का मानना है कि अगर भारत में इस वायरस ने फ्लू के नियमित पैटर्न के अनुसार मानसून के बाद यानी जुलाई के आसपास जोर पकड़ा, तो पहले से ही गरीबी, प्रदूषण, बीमारी, कुपोषण और चिकित्सकीय सुविधाओं का भारी अभाव झेल रहे हमारे राष्ट्र को इसे संभाल पाना बेहद मुश्किल होगा।
कोरोना ने यह भी साबित कर दिया है कि रोगाणुओं का संसार अनादि व अनंत है और मनुष्य पर यह उनका आखिरी हमला नहीं है। लिहाजा, यह सिर्फ जी को बहलाने जैसी बात है कि आधुनिक विज्ञान ने संक्रामक रोगों पर विजय प्राप्त कर ली है और मात्र साबुन से हाथ धोने जैसे उपाय करके उनसे बचा जा सकता है।
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