सुप्रीम कोर्ट में कुछ महिलाएँ अपने लिए न्याय माँगने गई थीं। उनका कहना था कि ‘हम सबरीमला में अयप्पा के दर्शन करना चाहती हैं जिसकी अनुमति ख़ुद सुप्रीम कोर्ट अपने एक फ़ैसले में दे चुका है। लेकिन वहाँ हमको दर्शन करने से रोका जा रहा है और सरकार भी हमें सुरक्षा नहीं दे रही है।’ ये महिलाएँ चाहती थीं कि सुप्रीम कोर्ट राज्य सरकार को उन्हें सुरक्षा मुहैया कराने का आदेश दे।
क्या हिंसा के डर से सुप्रीम कोर्ट को प्रतिकूल फ़ैसलों से बचना चाहिए?
- विचार
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- 14 Dec, 2019

सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश से लेकर अयोध्या विवाद मामले में अगर आप सुप्रीम कोर्ट के आदेश को देखेंगे तो पता चलता है कि सुप्रीम कोर्ट का ज़ोर तथ्यों पर कम और शांति क़ायम करने पर ज़्यादा रहा। ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि अगर अदालत का जोर शांति कायम करने पर रहेगा तो न्याय कैसे होगा?
सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा कोई आदेश देने से इनकार कर दिया क्योंकि इस फ़ैसले की समीक्षा एक बड़ी बेंच करने वाली है। जब महिलाओं के वकीलों ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने केवल समीक्षा का निर्णय किया है, अपने पिछले निर्णय पर कोई रोक नहीं लगाई है तो मुख्य न्यायाधीश ने वकीलों की बात से सहमति जताई। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘आपका कहना सही है कि कोर्ट के फ़ैसले पर कोई रोक नहीं है और ये महिलाएँ ख़ुशी-ख़ुशी अयप्पा के दर्शनों के लिए जा सकती हैं, क़ानून भी उनके साथ है लेकिन यह मुद्दा भावनाओं से जुड़ा हुआ है और स्थिति बहुत विस्फोटक है। हम नहीं चाहते कि हमारे किसी भी आदेश से वहाँ हिंसक स्थिति पैदा हो। इसलिए हम अभी कोई आदेश नहीं देंगे।’
नीरेंद्र नागर सत्यहिंदी.कॉम के पूर्व संपादक हैं। इससे पहले वे नवभारतटाइम्स.कॉम में संपादक और आज तक टीवी चैनल में सीनियर प्रड्यूसर रह चुके हैं। 35 साल से पत्रकारिता के पेशे से जुड़े नीरेंद्र लेखन को इसका ज़रूरी हिस्सा मानते हैं। वे देश