“चीज़ें जैसी दीखती हैं, वैसी वे नहीं हैं। जो कहा जा रहा है, उससे अधिक वह गूँज रहा है जो कहा नहीं गया। जब कोई आपको गले लगाने बढ़ता है तो उसके दस्तानों पर ध्यान जाता है।” किसानी संबंधी क़ानूनों पर मध्यस्थता करने के लिए समिति की घोषणा के पहले तक सर्वोच्च न्यायालय में जो कुछ चल रहा था, उसे देखते हुए बस यही सब कुछ ख्याल आ रहा था, लेकिन समिति के नामों के ऐलान के बाद जो झीना-सा पर्दा था, वह भी हट गया।