कांग्रेस-अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने 7 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर पाँच सुझाव दिए थे, उनमें से ज़्यादातर बहुत अच्छे थे। मैंने उनका समर्थन किया था लेकिन कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में उन्होंने जो कुछ बोला है, वह कांग्रेस-जैसी महान पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए शोभा नहीं देता। उनके बयान से ऐसा नहीं लगता कि वे कोरोना-युद्ध में भारत की जनता के साथ हैं, हालाँकि उन्होंने आम लोगों को सरकार द्वारा साढ़े सात हजार रुपये देने की माँग की है। वह कोरोना से लड़ने की बजाय सरकार से लड़ने पर उतारू हो गई हैं।
पता नहीं, किसने उनके दिमाग़ में यह बात भर दी है कि भाजपा कोरोना के संकट को सांप्रदायिक रूप दे रही है। क्या सोनियाजी के पास अपनी बात सिद्ध करने के लिए कोई प्रमाण है? जबसे तब्लीग़ी जमात के निज़ामुद्दीन-जमावड़े का मामला तूल पकड़ा है, मैं कई बार अपने लेखों में लिख चुका हूँ और टीवी चैनलों पर बोल चुका हूँ कि भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं ने तब्लीग़ियों की लापरवाही और मूर्खता को भुनाने की कोई कोशिश नहीं की। उन्होंने मुसलमानों के ख़िलाफ़ एक शब्द तक नहीं बोला। यों भी आम मुसलमान तो बिल्कुल निर्दोष है। उसका तब्लीग़ी जमावड़े से क्या लेना-देना?
कुछ गुमराह और नादान मुसलमान ग़लतफहमी और अफ़वाहों के शिकार होकर डाॅक्टरों, नर्सों और पुलिसवालों के साथ मार-पीट और गाली-गलौज ज़रूर कर रहे हैं लेकिन सरकार और भाजपा नेताओं ने बार-बार कहा है कि इस मामले को सांप्रदायिक रूप देना उचित नहीं है। ऐसी नादानी कोई भी कर सकता है जैसे कि महाराष्ट्र के पालघर में दो हिंदू साधुओं और एक ड्राइवर की भीड़ ने हत्या कर दी। क्या वह भीड़ मुसलमानों की थी? नहीं, वह गुमराह हिंदुओं की थी।
भाजपा पर सांप्रदायिकता का आरोप लगाकर सोनिया गाँधी ने अपना और अपनी पार्टी का ही नुक़सान किया है। देश के बहुसंख्यक लोग और समझदार मुसलमान लोग कांग्रेस के रवैए पर हैरान हैं। इस समय हमें एकजुट होकर इस कोरोना राक्षस से लड़ना है या वोट बैंक की राजनीति करना है? भाजपा सरकार ने डॉक्टरों पर हमला करनेवालों के ख़िलाफ़ जो सख़्त अध्यादेश जारी किया है, क्या वह सिर्फ़ मुसलमानों के ख़िलाफ़ है? वह हर नागरिक पर लागू होगा, वह हिंदू हो या मुसलमान?
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