महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू होने से पहले चले घटनाक्रम में जब शिवसेना और कांग्रेस के साथ आने की संभावनाएँ बन रही थीं तो टेलीविज़न चैनलों पर कई राजनीतिक विश्लेषक और टिप्पणीकार हैरानी जता रहे थे। सभी का कहना था कि अगर कांग्रेस और शिवसेना साथ आती हैं तो यह भारतीय राजनीति में अनोखी घटना मानी जाएगी और इससे अभूतपूर्व अवसरवाद की मिसाल कायम होगी। अपने उग्र हिंदुवादी तेवरों के लिए जानी जाने वाली शिवसेना का बीजेपी से क़रीब 30 साल पुराना नाता तोड़कर एनसीपी और कांग्रेस से हाथ मिलाने की संभावना ने राजनीतिक विश्लेषकों से इतर कई आम लोगों को भी हैरान किया। मगर सवाल है कि क्या वाक़ई शिवसेना और कांग्रेस राजनीतिक तौर पर एक-दूसरे के लिए वैसे ही अछूत हैं, जैसा कि उन्हें समझा जा रहा है?