‘उत्तर-सत्य’ के इस युग में असत्य का बोलबाला होना स्वाभाविक है, लेकिन कोई यह उम्मीद नहीं करता कि देश के इतिहास को लेकर सरकार भी कल्पित घटनाओं को ‘प्रमाण’ की तरह पेश करेगी। 24 मई को गृहमंत्री अमित शाह ने जिस सेंगोल को अंग्रेज़ों से सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में पेश किया था, वह पूरा क़िस्सा ही संदिग्ध हो गया है। इसमें शक़ नहीं कि सेंगोल को तमिलनाडु के एक अधीनम (मठ) से सेंगोल दिया गया था, लेकिन यह अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन के हाथों पं.नेहरू को सौंपा गया था, इसका कोई दस्तावेज़ी प्रमाण नहीं है।