पिछले कुछ दशकों में भारत में कई बाबाओं का उदय हुआ है। इसके पहले भी बाबा हुआ करते थे, मगर इन दिनों बाबाओं का जितना राजनैतिक और सामाजिक दबदबा है, उतना पहले शायद कभी नहीं रहा। कई बाबा अनेक तरह के काले कामों में लिप्त भी पाए गए हैं, मगर उनकी दैवीय छवि के चलते उनके अपराधों को नज़रअंदाज़ किया जाता रहा है। शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती पर उनके आश्रम के एक कर्मी शंकर रमण की हत्या का आरोप था। सत्यसाईं बाबा के प्रशांति निलयम में भी एक हत्या हुई थी। गुरमीत राम रहीम के कुकर्मों को उजागर करने के लिए पत्रकार छत्रपति रामचंद्र को अपनी जान गंवानी पड़ी। अंततः राम रहीम कानून के पंजे में फँस गया और इन दिनों जेल में है। यह अलग बात है कि वो अधिकांश समय पैरोल पर बाहर रहता है। आसाराम बापू लम्बे समय तक कानून की पकड़ से दूर रहा मगर अब वह सीखचों के पीछे है। इस समय बागेश्वर धाम नामक एक बाबा काफी लोकप्रिय है। ये कुछ उदाहरण मात्र हैं। देश में असंख्य बाबा हैं जो अपने-अपने अंधभक्तों की भीड़ से घिरे रहते हैं। उनकी रईसी देखते ही बनती है।
चिकित्सा की दुनिया में बाबाओं की मनमानी से किसका भला?
- विचार
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- 12 Apr, 2024

पतंजलि के उत्पादों के विज्ञापनों में कथित उल-जलूल दावों पर बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण की माफी के बाद भी सुप्रीम कोर्ट राहत देने को तैयार क्यों नहीं है? आख़िर बाबाओं की ऐसे कारनामों से कितना बड़ा नुक़सान?
दो अन्य बाबाओं का ज़िक्र ज़रूरी है। एक हैं श्री श्री रविशंकर, जिन्होंने अपने उत्सव के लिए यमुना को बर्बाद कर दिया था। वे अन्ना हजारे के आरएसएस-समर्थित आन्दोलन से भी जुड़े हुए थे। फिर बाबा रामदेव हैं। रामदेव ने अपने करियर की शुरुआत योग गुरु के रूप में की थी। लेकिन बाद में उन्होंने पतंजलि ब्रांड नाम से व्यापार शुरू कर दिया। आयुर्वेदिक उत्पादों को बनाने और बेचने वाली इस कंपनी ने बाबा रामदेव को अरबपतियों की श्रेणी में ला खड़ा किया। बाबा रामदेव और उनके सहयोगी आचार्य बालकृष्ण ने एक बड़ा साम्राज्य स्थापित कर लिया है और उन्हें चुनौती देने वाला कोई नहीं है। या कम से कम अब तक तो नहीं था। उनके आयुर्वेदिक उत्पादों का जबदस्त प्रचार-प्रसार हुआ और मीडिया का एक बड़ा तबका उनका गुणगान करने लगा।