सन 1980 के दशक में देश में शांति-व्यवस्था और प्रगति पर गम्भीर हमले हुए। साम्प्रदायिक ताकतों के हाथ एक नया औज़ार लग गया। वे देश के पूजास्थलों के कथित अतीत का उपयोग साम्प्रदायिकता भड़काने के लिए करने लगे। लालकृष्ण आडवाणी ने रथयात्रा निकाली। उनकी मुख्य मांग यह थी कि जिस स्थल पर पिछले पांच सदियों से बाबरी मस्जिद खड़ी थी ठीक उसी स्थल पर एक भव्य राम मंदिर का निर्माण किया जाना चाहिए। इस मुद्दे पर बढ़ती कड़वाहट और तनाव के मद्देनज़र संसद ने एक नया कानून पारित किया जिसके तहत पूजास्थलों की जो प्रकृति 15 अगस्त 1947 को थी, उसे बदला नहीं जा सकेगा और वही बरकरार रहेगी।