आरएसएस से स्नातक हुए और अब बीजेपी के महासचिव राम माधव ने भारत में 25 जून 1975 में आपातकाल राज की 45वीं बरसी पर यह दावा किया है कि देश में प्रजातंत्र बचा हुआ है क्योंकि ‘सरकार चला रहे नेता (आरएसएस-बीजेपी से जुड़े) उनमें से हैं जिन्होंने (आपातकाल के ख़िलाफ़) आज़ादी की लड़ाई लड़ी। वे उदारवादी प्रजातान्त्रिक मूल्यों के प्रति समर्पित हैं, किसी मजबूरी की वजह से नहीं बल्कि एक धर्मसिद्धान्त के तौर पर।’ ये दोनों दावे सफ़ेद झूठ हैं क्योंकि आरएसएस-बीजेपी राज में एक तरह से अघोषित आपातकाल लागू है जिसका शिकार, आम लोग, राजनैतिक/सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार, मज़दूर/छात्र/महिला/शिक्षक/किसान संगठन, दलित, अल्पसंख्यक समुदाय, यहाँ तक कि अदालतें भी हो रही हैं।
आपातकाल - आरएसएस ने क्यों कहा था कि उसका जेपी आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं?
- विचार
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- 26 Jun, 2020

प्रधानमंत्री मोदी ने आपातकाल को लेकर कांग्रेस पर हमला किया है। तो सवाल है कि आख़िर आरएसएस की भूमिका क्या थी? चार साल पहले शमसुल इसलाम ने इस पर विस्तृत टिप्पणी लिखी थी। जानिए, संघ की भूमिका को।
यह बिना वजह नहीं है। मौजूदा भारत के शासकों की रगों में आरएसएस का ख़ून दौड़ता है। आरएसएस प्रमुख गुरु गोलवलकर, जिन्हें मोदी अपने आप को एक कुशल राजनैतिक नेता में ढलने का श्रेय भी देते हैं, ने 1940 में ही आरएसएस के 1350 उच्चस्तरीय कार्यकर्ताओं के सामने भाषण में कहा था कि:
‘एक ध्वज के नीचे, एक नेता के मार्गदर्शन में, एक ही विचार से प्रेरित होकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदुत्व की प्रखर ज्योति इस विशाल भूमि के कोने-कोने में प्रज्जवलित कर रहा है।’