“ जो भी हो, हार को स्वीकार करना ही पड़ता है। इसे दूर करने का कोई प्रयास नहीं होना चाहिए। बहरहाल, पूरे अभियान का बारीकी से विश्लेषण किया जाना चाहिए ताकि भविष्य में नुकसान से बचा जा सके”- जनसंघ दिनों के सिद्धांतकार पंडित दीनदयाल उपाध्याय के इस कथन के साथ संघ के मुखपत्र कहे जाने वाले ‘द आर्गनाइज़र’ ने कर्नाटक चुनाव परिणाम की समीक्षा करते हुए वह संपादकीय छापा है जिसकी काफ़ी चर्चा है। ‘कर्नाटक रिज़ल्ट्स: अपार्चून टाइम फॉर इंट्रोस्पेक्शन’ (कर्नाटक परिणाम: आत्मनिरीक्षण का अवसर) शीर्षक से छपे प्रफुल्ल केतकर के इस लेख में कुछ ऐसा है जिसमें 2024 में बीजेपी की सफलता को लेकर आशंका के तौर पर देखा जा रहा है, लेकिन वास्तव में यह आरएसएस की आशंकाओं की गठरी है जिसके भरे चौराहे खुल जाने का ख़तरा मँडरा रहा है।
2024 में मोदी नहीं अपनी हार से डरा हुआ है आरएसएस
- विचार
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- 11 Jun, 2023
कर्नाटक में भाजपा की हार और 2024 आम चुनाव के मद्देनजर ऑर्गनाइजर में प्रकाशित लेख का विश्लेषण अभी भी जारी है। ऑर्गनाइजर को आरएसएस से जुड़ा अखबार माना जाता है और इनमें प्रकाशित लेख संघ की नीतियों को प्रदर्शित करते हैं। स्तंभकार पंकज श्रीवास्तव ने भी इसका विश्लेषण किया है। पढ़िएः
