“ जो भी हो, हार को स्वीकार करना ही पड़ता है। इसे दूर करने का कोई प्रयास नहीं होना चाहिए। बहरहाल, पूरे अभियान का बारीकी से विश्लेषण किया जाना चाहिए ताकि भविष्य में नुकसान से बचा जा सके”- जनसंघ दिनों के सिद्धांतकार पंडित दीनदयाल उपाध्याय के इस कथन के साथ संघ के मुखपत्र कहे जाने वाले ‘द आर्गनाइज़र’ ने कर्नाटक चुनाव परिणाम की समीक्षा  करते हुए वह संपादकीय छापा है जिसकी काफ़ी चर्चा है। ‘कर्नाटक रिज़ल्ट्स: अपार्चून टाइम फॉर इंट्रोस्पेक्शन’ (कर्नाटक परिणाम: आत्मनिरीक्षण का अवसर) शीर्षक से छपे प्रफुल्ल केतकर के इस लेख में कुछ ऐसा है जिसमें 2024 में बीजेपी की सफलता को लेकर आशंका के तौर पर देखा जा रहा है, लेकिन वास्तव में यह आरएसएस की आशंकाओं की गठरी है जिसके भरे चौराहे खुल जाने का ख़तरा मँडरा रहा है।