आरएसएस का एक बड़ा वाजिब सवाल है। मुसलमान भारत में 16 करोड़ हैं फिर भी वे डरते क्यों हैं? जबकि दूसरे अल्पसंख्यकों की आबादी बहुत कम है लेकिन उन्हें डर नहीं लगता। आरएसएस के सह सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल ने यह सवाल पिछले दिनों दिल्ली में उठाया। वह आरएसएस में तीसरे नंबर के नेता हैं। वह मुग़ल शासक औरंगज़ेब के भाई दारा शिकोह के संदर्भ में बोल रहे थे और एक तरह से कह रहे थे कि भारत के मुसलमानों को दारा शिकोह का रास्ता अपनाना चाहिये न कि औरंगज़ेब का। औरंगज़ेब को आरएसएस और हिंदुत्ववादी कट्टरपंथी मुसलमान मानते हैं। जिसने अपने शासन काल में हिंदुओं पर जज़िया कर लगाया था। जज़िया कर एक तरह का धार्मिक कर होता है जिसे ग़ैर-इसलामी धर्मों के ऊपर कई इसलामी शासकों और सुल्तानों ने लगाया था।

आरएसएस का ही एक सवाल है कि मुसलमान भारत में 16 करोड़ हैं फिर भी वे डरते क्यों हैं? इसका जवाब क्या संघ को पता नहीं है? आरएसएस और हिंदुत्ववादी भारत के मुसलमानों को औरंगज़ेब से प्रेरित क्यों मानते हैं और क्यों उन्हें गाहे-बगाहे औरंगज़ेब के भाई दारा शिकोह के रास्ते पर चलने की सलाह देते हैं? क्या मुसलमानों को डरने की ज़रूरत होगी अगर संघ अपना नज़रिया बदल ले?
लेकिन यहाँ सवाल दारा शिकोह और औरंगज़ेब का नहीं है। सवाल है कि आरएसएस और हिंदुत्ववादी भारत के मुसलमानों को औरंगज़ेब से प्रेरित क्यों मानते हैं और क्यों उन्हें गाहे-बगाहे दारा शिकोह के रास्ते पर चलने की सलाह देते हैं? दरअसल दिक़्क़त आरएसएस और हिंदुत्ववादियों के नज़रिये में है। जिस नज़र से वे इतिहास को देखते और विश्लेषण करते हैं, उसमें ख़ामियाँ हैं और वही है पूरे फसाद की जड़। वामपंथी और लिबरल इतिहासकारों की तुलना में हिंदुत्ववादी भारत के इतिहास को, ख़ासतौर पर मध्ययुगीन इतिहास को, सेकुलर नज़रिये से न देखकर उसका विश्लेषण धार्मिक संघर्ष की दृष्टि से करते हैं। सेकुलर इतिहासकार यह कहते हैं कि भारत का इतिहास राजाओं के संघर्ष का इतिहास है। राजा हिंदू रहा हो या मुसलमान, सब ने सत्ता की प्राप्ति के लालच में ग़लत-सही काम किये और सत्ता में आने के बाद सत्ता में बने रहने के लिये जो भी आवश्यक लगा उसे अंजाम दिया। अत्याचार भी किया और कल्याणकारी क़दम भी उठाये।
पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है।