प्रिय रोहित,जिस सड़ांध को छोड़कर तुम सितारों की सैर पर गए वह सड़ांध अब और ज्यादा बदबूदार हो गई है। शैक्षणिक संस्थानों के बड़े बड़े दरवाजे अब दलित, आदिवासी, पिछड़े- वंचितों के लिए अधिक संकीर्ण हो चले हैं। इन स्थानों पर संवाद के लिए जगह दिन-ब-दिन सिकुड़ रही है। हां, सदियों तक कमजोरों और सामाजिक रुप से वंचितों को जिस अफीम के नशे में सुलाया जाता रहा, वह जरूर बढ़ता जा रहा है। अपने हक-हुकूक के लिए तनी मुट्ठियाँ और बुलंद आवाजों को दबाने के लिए तमाम संस्थान वही कर रहे हैं, जो तुम्हारे साथ सेंट्रल यूनिवर्सिटी हैदराबाद ने किया था।