अब तक होता यह आया था कि जहां नरेंद्र मोदी खड़े हो जाते थे लाइन वहीं से शुरू हो जाती थी, जिधर को नरेंद्र मोदी का रुख होता था हवाएं भी उसी ओर रुख कर लिया करती थीं...लेकिन अब फिजां में कुछ बदलाव नज़र आ रहा है। अब मोदीजी बदलती हवा के रुख के साथ अपना रुख बदलने लगे हैं। यकीन नहीं होता ना! लेकिन, यकीन करना पड़ेगा।
बीजेपी की दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से खबर निकली कि मोदी जी ने फिल्म ‘पठान’ को हरी झंडी दे दी है। मतलब ये कि अब बीजेपी की ओर से कोई विरोध करता नज़र नहीं आएगा। लेकिन, इसका क्या मतलब है? बैठक में मौजूद नरोत्तम मिश्रा की ओर कैमरे की नज़र दौड़ रही थी जब पीएम मोदी ऐसा कह रहे थे।
फिल्म पठान क्या नरेंद्र मोदी चाहते थे हिट कराना?
बैठक से बाहर प्रेस के कैमरे भी जब प्रज्ञा ठाकुर का रुख करेंगे, माइक आगे बढ़ेंगे तो प्रज्ञा ठाकुर की प्रतिक्रिया भी बचने-निकलने की ही होगी। फिल्म ‘पठान’ का विरोध करते-करते बीजेपी नेता, बीजेपी की सोशल मीडिया और उनके समर्थक जब हवा का रुख नहीं बदल सके और थक गये तो पीएम मोदी क्या करते? भारत में फिल्म रिलीज होने से पहले ‘पठान’ ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अपने डंके बजा रही है, दुनिया में सुपरहिट हो रही है और भारत में भी फिल्म ‘पठान’ का हिट होना निश्चित हो गया लगता है तो चारा ही क्या रह जाता है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्या अपनी, सरकार और पार्टी की किरकिरी कराते? अब ‘पठान’ हिट होगी तो कहा जाएगा कि नरेंद्र मोदी ने हिट करा दी। अगर मोदी ऐसा नहीं करते और ‘पठान’ हिट हो जाती तो प्रतिष्ठा किसकी मिट्टी में मिलती?
फिल्म पठान का पोस्टर
“पठान को हिट होने से कोई रोक नहीं सकता”- यह घोषणा बहुत पहले कर दी गयी थी। ऐसा आमिर खान की फर्जी आईडी से किया गया था। मगर, यह संदेश भी हिट हो चुका था। विश्वास नहीं होता कि इस ट्वीटकर्ता को पहले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘पठान’ प्रेमी रुख का पहले से पता था। अगर अविश्वास करें तो मतलब साफ है कि हवा का रुख पीएम मोदी ने समय रहते ही भांप लिया है।
मुसलमानों के खिलाफ बयानों पर क्यों बोलने को विवश हुए मोदी?
बात सिर्फ फिल्म पठान की नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुसलमानों के बारे में भी अनाप-शनाप कहने से बीजेपी नेताओं को रोका है। इससे पहले कभी नरेंद्र मोदी ने ऐसा बयान क्यों नहीं दिया? अनुराग ठाकुर, प्रवेश साहिब सिंह वर्मा, गिरिराज सिंह, सीएम योगी आदित्यनाथ, गृहमंत्री अमित शाह और कपिल मिश्रा जैसे नेता दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले खुलेआम मुसलमानों के खिलाफ बयान दे रहे थे। मजाल है कि कभी बीजेपी ने या फिर प्रधानमंत्री ने अपनी जुबान तक खोली हो।
राजधानी दिल्ली में बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय की बुलायी गयी सभा में मुसलमानों के कत्लेआम के नारे लगे, हरिद्वार धर्म संसद हो या फिर रायपुर संसद- हर जगह मुसलमानों के खिलाफ आग उगले गये। मगर, कभी नरेंद्र मोदी ने नहीं कहा कि मुसलमानों के खिलाफ अनाप-शनाप बोलना बंद होना चाहिए। स्वयं नरेंद्र मोदी ने भी प्रदर्शनकारियों को कपड़ों से पहचानने और श्मशान-कब्रिस्तान करने से परहेज नहीं किया।
मॉब लिंचिंग तक पर चुप रहे थे मोदी
मॉब लिंचिंग पर एक बार पीएम मोदी ने जुबान भी खोली तो यह बोलने के लिए कि झारखण्ड को बदनाम किया जा रहा है। यह नहीं कहा कि मॉब लिंचिंग करना गुनाह है, इसमें शामिल ना हों या फिर ऐसी घटना की निन्दा की जानी चाहिए। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के 80-20 के नारे का चाहे जो मतलब निकाला जाता रहे, कभी प्रधानमंत्री मोदी ने इसकी परवाह नहीं की। कभी लाउडस्पीकर विवाद तो कभी हनुमान चालीसा विवाद- हिन्दू-मुस्लिम का खेल खेलने में बीजेपी समर्थक हमेशा से आगे रहे। मजाल है कि कभी बीजेपी के केंद्रीय नेताओं या फिर खुद पीएम नरेंद्र मोदी का रुख बदला हो!
तो, क्या अब हवा का रुख बदल गया है या बदलने वाला है? बीजेपी अब पसमांदा समाज के मुसलमानों को अपने साथ जोड़ने में जुटी है। यह उनकी राजनीतिक जरूरत है। इसके लिए नरेंद्र मोदी ने रुख बदला है तो स्पष्ट है कि अब मोदी खुद बदली हुई हवा का रुख भांपने की कोशिशों में जुटे हुए हैं। इन सबके बीच नरेंद्र मोदी ने महत्वपूर्ण बात यह कही है कि बीजेपी अब सामाजिक आंदोलन बन गयी है। क्या मायने हैं इसके? रणनीति का खुलासा जल्द होगा। लेकिन, यह तय है कि हिन्दू या मुसलमान हर तबके के दलितों-पिछड़ों को साथ लेकर चलने की रणनीति पर बीजेपी अमल करने को बेताब हो रही है।
चुनाव देखकर बदल गये मोदी!
2019 का चुनाव जीतने के तुरंत बाद अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए को हटाने से लेकर राम मंदिर के मुद्दे पर बीजेपी ध्रुवीकरण की सियासत करती रही। सीएए-एनआरसी का डर भी दिखाया जाता रहा। अब जबकि 2024 का आम चुनाव नजदीक है तो जरूरत भी बदल गयी है। बदली हुई जरूरत की एक बड़ी वजह है राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा जो स्वयं सबको साथ जोड़ने की घोषित कवायद है। इस कवायद में धार्मिक और जातिगत विषमता तोड़ने की पहल है। राहुल की यात्रा की सफलता ने नरेंद्र मोदी को क्या हवा के बदलते रुख को समझने का अवसर दिया है और वे मौका चूकना नहीं चाहते?
ऑक्सफेम की रिपोर्ट के बीच जो वास्तव में राहुल गांधी के उस दावे की पुष्टि है जिसमें मोदी सरकार पर चंद उद्योगपतियों के लिए काम करने का आरोप है, अब बीजेपी के पास रास्ता ही क्या बचता है? सामाजिक न्याय के नारे के पीछे छिपकर ही वे बहुसंख्यक लोगों की आलोचनाओं का रुख मोड़ सकते हैं। इस आवरण में चुनावी वक्त में मुसलमानों को रिझाने का रास्ता भी निकाल रहे हैं नरेंद्र मोदी। ऐसा करना इसलिए जरूरी हो चुका है क्योंकि युवाओ का एक बड़ा वोटर वर्ग बीजेपी से दूर हुआ है।
मतदाता भी समझते हैं बदलती हवा का रुख
सवाल यह है कि मतदाता क्या वक्त के साथ बदलते रुख को नहीं पहचानता? क्या मतदाता पुरानी बातों को भुला जाएंगे? वास्तव में मतदाता भूलते ज्यादा हैं। यही कारण है कि बीजेपी की पिछली राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में किए गये वादों की आज याद दिलाने वाला कोई नहीं। उक्त बैठक के बाद 10 लाख सरकारी नौकरी देने का वादा हुआ था। आज उस वादे के बारे में पूछने वाला तक कोई नहीं। यहां तक कि सरकार की ओर से भी कोई जवाब देने को तैयार नहीं खड़ा है। आगे नये वादों के साथ बीजेपी खड़ी है। बीजेपी को सामाजिक आंदोलन बताना एक नये वादे का एलान करना है। फिल्म ‘पठान’ को स्वीकार कर लेना भी वक्त के सामने नतमस्तक होना है। जनता किस रूप में नरेंद्र मोदी के बयान को लेती है इसका पता तो मतदान के बाद मतगणना वाले दिन ही पता चलेगा, लेकिन यह साफ है कि मोदी हवा का रुख बखूबी समझ रहे हैं।
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