आज़ादी के अमृत-काल की अब एक पहचान यह भी बन गयी है कि संवैधानिक पद पर बैठे लोग संविधान और उसकी मूल आत्मा पर लगातार हमला करें। तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि का ‘धर्म-निरपेक्षता’ को यूरोपीय अवधारणा बताते हुए यह कहना कि इसकी भारत को ज़रूरत नहीं है, इसी सिलसिले की ताज़ा कड़ी है। राज्यपाल के इस बयान से आरएसएस तो ख़ुश हो सकता है, लेकिन यह संविधान पर सीधा हमला और स्वतंत्रता आंदोलन के संकल्पों का अपमान है।