आज़ादी के अमृत-काल की अब एक पहचान यह भी बन गयी है कि संवैधानिक पद पर बैठे लोग संविधान और उसकी मूल आत्मा पर लगातार हमला करें। तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि का ‘धर्म-निरपेक्षता’ को यूरोपीय अवधारणा बताते हुए यह कहना कि इसकी भारत को ज़रूरत नहीं है, इसी सिलसिले की ताज़ा कड़ी है। राज्यपाल के इस बयान से आरएसएस तो ख़ुश हो सकता है, लेकिन यह संविधान पर सीधा हमला और स्वतंत्रता आंदोलन के संकल्पों का अपमान है।
धर्मनिरपेक्षता नहीं, संविधान के मूल ढाँचे पर हमला किया राज्यपाल रवि ने!
- विचार
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- 29 Sep, 2024

आरएसएस और उसके नुमाइंदे अरसे से धर्मनिरपेक्षता के भाव को न समझकर शब्दों का खेल खेलते हुए दुष्प्रचार में जुटे हैं। लेकिन जब कोई राज्यपाल ऐसा करता है तो वह संविधान की शपथ का उल्लंघन कर रहा होता है।
कन्याकुमारी में कुछ दिन पहले एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राज्यपाल महोदय ने कहा कि "यूरोप में धर्म-निरपेक्षता इसलिए आयी क्योंकि चर्च और राजा के बीच लड़ाई हुई थी... भारत 'धर्म' से कैसे दूर हो सकता है? धर्म-निरपेक्षता एक यूरोपीय अवधारणा है और इसे वहीं रहने दें। भारत में धर्म-निरपेक्षता की कोई ज़रूरत नहीं है।” इतना ही नहीं, शहीद प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी पर अशोभनीय टिप्पणी करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि "एक असुरक्षित प्रधानमंत्री ने आपातकाल के दौरान संविधान में धर्म-निरपेक्षता शब्द को कुछ वर्ग के लोगों को खुश करने के लिए जोड़ा!”