पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज अब हमारे बीच नहीं रहीं। बीती रात अचानक दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। सुषमा महज़ 67 साल की उम्र में ही इस दुनिया को अलविदा कह गईं। उनके यूँ अचानक दुनिया से चले जाने से पूरा देश स्तब्ध है। पिछले पाँच साल में बतौर विदेश मंत्री ट्विटर पर ही सैकड़ों लोगों की समस्याएँ सुलझा कर सुषमा स्वराज ने न सिर्फ़ देश में, बल्कि दुनिया भर में लोगों के दिलों में ख़ास जगह बनाई। उसी की वजह से आज उनके निधन पर देशभर में मातम छाया हुआ है।
सुषमा स्वराज अपने बेहद सहज और मिलनसार स्वभाव की वजह से राजनीतिक गलियारों में सबकी चहेती रहींं। सभी पार्टियों में नेताओं से उनके व्यक्तिगत अच्छे संबंध थे। उनका राजनीतिक जीवन काफ़ी उतार-चढ़ाव वाला रहा। 70 के दशक में समाजवादी आंदोलन से जुड़कर हरियाणा से राजनीति की शुरुआत करने वाली सुषमा स्वराज 90 के दशक में बीजेपी में शामिल हुईंं। वाजपेयी की 13 दिन की सरकार में सूचना और प्रसारण मंत्री बनीं। बाद की सरकारों में स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ-साथ और मंत्रालय भी संभाले। इस बीच 3 महीने के लिए दिल्ली की मुख्यमंत्री भी रहीं।
प्रधानमंत्री पद के दावेदारों में थीं शामिल
1996 में वाजपेयी की 13 दिन की सरकार गिरने के बाद सुषमा स्वराज ने पार्टी प्रवक्ता की ज़िम्मेदारी संभाली। हिंदी और अंग्रेज़ी पर बढ़िया पकड़ और नपे-तुले शब्दों में अपनी बात कहने की कला में माहिर होने की वजह से वह पत्रकारों के बीच काफ़ी लोकप्रिय रहीं। पार्टी और देश से जुड़े मुद्दों पर वह पार्टी का पक्ष बहुत ही मज़बूती से रखती थींं। यही ख़ासियत उन्हें राजनीति में एक मामूली कार्यकर्ता से लेकर विदेश मंत्री तक के ऊँचे ओहदे तक ले गई। बीजेपी में नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवारी से पहले सुषमा स्वराज भी प्रधानमंत्री पद की मज़बूत दावेदार मानी जाती रही थींं।
ट्विटर से समस्या समाधान
बतौर विदेश मंत्री लोगों की समस्याओं को हल करने के लिए सोशल नेटवर्किंग साइट ट्विटर का जिस तरह सुषमा स्वराज ने इस्तेमाल किया उसकी शायद ही कोई दूसरी मिसाल हो। उनका यह काम एकदम लीक से हटकर था। मोदी सरकार में मोदी के बाद ट्विटर पर वह सबसे ज़्यादा लोकप्रिय नेता रहीं। पीएम मोदी चाहते थे कि सुषमा स्वराज की तरह बाक़ी नेता भी ट्विटर को लोगों से जुड़ने और उनकी समस्याएँ हल करने का ज़रिया बनाएँ। लेकिन बाक़ी नेता ऐसा करने में नाकाम रहे। ट्विटर पर सुषमा स्वराज को एक करोड़ 31 लाख लोग फ़ॉलो करते हैं। लेकिन ताज्जुब की बात यह है कि सुषमा स्वराज ट्विटर पर किसी को फॉलो नहीं करती थींं। यहाँ तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी नहीं।
कई बार उठाए चौंंकानेवाले क़दम
सुभाष स्वराज ने कई बार ऐसे क़दम उठाए और कई बार ऐसी बातें कहीं जिन पर उनकी पार्टी के अंदर और राजनीतिक गलियारों में भी जमकर चर्चा हुई। 1999 में सोनिया गाँधी को हराने के मक़सद से उनके ख़िलाफ़ बेल्लारी से चुनाव लड़ना सुषमा स्वराज का एक बोल्ड क़दम था। सोनिया गाँधी को हराने के लिए वह इस हद तक आगे बढ़ गई थीं कि उन्होंने बेल्लारी में चुनाव प्रचार के दौरान कन्नड़ भाषा भी सीख ली थी। स्थानीय लोगों से वह कन्नड़ में ही बात करने की कोशिश करती थीं।
सोनिया के पीएम बनने पर दी थी सिर मुंंडाने की धमकी
2004 में अपने सहयोगी दलों के साथ कांग्रेस सत्ता में आई। सोनिया गाँधी के कांग्रेस संसदीय दल और यूपीए संसदीय दल की नेता चुनी गईं थीं। उस वक़्त लगने लगा था कि सोनिया गाँधी ही प्रधानमंत्री बन जाएँगी। तब अचानक सुषमा स्वराज ने एक ऐसी बात कह दी जिसकी इससे पहले किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। उन्होंने मीडिया को अपने घर बुलाकर एलान किया, 'अगर सोनिया गाँधी प्रधानमंत्री बनती हैं तो मैं सिर मुड़ा लूँगी। ज़िंदगी भर सफेद साड़ी पहनूँगी। चटाई पर सोऊँगी और सिर्फ़ चना खाऊँगी।'
बाद में सुधार लिए थे रिश्ते
उनके इस बयान से राजनीति में तूफ़ान आ गया था। बीजेपी के तमाम बड़े नेता भी हैरान थे। हालाँकि बाद में सोनिया गाँधी ने ख़ुद प्रधानमंत्री बनने के बजाय डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया था। तब सुषमा खेमे की तरफ़ से ख़बरें उड़ाई गई थी कि सुषमा स्वराज के इस एलान के बाद ही सोनिया गाँधी ने प्रधानमंत्री की कुर्सी से अपने क़दम पीछे खींचे हैं। इस पूरे घटनाक्रम के चलते सुषमा और सोनिया के बीच कई साल तक तल्ख़ियाँ बनी रहीं लेकिन बाद में धीरे-धीरे दोनों के बीच नज़दीकी रिश्ता भी बना। एक बार सदन में राहुल गाँधी के साथ किसी बात को लेकर नोकझोंक हुई तो बाहर निकल कर सुषमा ने राहुल गाँधी का हाथ पकड़कर गले लगा लिया था।
गीता पर हाथ रखकर खाई थी क़सम
सुषमा स्वराज की ज़िंदगी में एक ऐसा भी मुक़ाम आया था। जब उन्हें पत्रकारों के सामने गीता पर हाथ रखकर क़सम खानी पड़ी थी। बात 1998 की है। दिल्ली में विधानसभा के चुनाव हो रहे थे। सुषमा स्वराज दिल्ली की मुख्यमंत्री थीं और दक्षिणी दिल्ली की मालवीय नगर सीट से उम्मीदवार थींं। उनके मुक़ाबले कांग्रेस ने किरण वालिया को उतारा था। दोनों के बीच बेहद काँटे का मुक़ाबला हो रहा था। प्रचार ख़त्म होने से ठीक एक दिन पहले कुछ शरारती तत्वों ने सुषमा स्वराज के उस वक़्त के कुख्यात अपराधी रोमेश शर्मा के साथ आपत्तिजनक स्थिति वाले पोस्टर उनकी विधानसभा क्षेत्र में बँटवा दिए। यह हरकत न सिर्फ़ सुषमा स्वराज के चरित्र हनन की कोशिश थी बल्कि उन्हें चुनाव हराने की भी साज़िश थी।
उस दिन सुषमा स्वराज ने बीजेपी मुख्यालय 11 अशोक रोड पर शाम को अचानक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई। प्रेस कॉन्फ्रेंस में आईंं तो उनके हाथ में गीता थी। भगवत गीता। आते ही बग़ैर भूमिका उन्होंने गीता पर हाथ रखकर बोलना शुरू किया, 'मैं सुषमा स्वराज, गीता पर हाथ रखकर क़सम खाती हूँ कि मैं रोमेश शर्मा को जानती नहीं। मैं रोमेश शर्मा से कभी मिली नहीं। मेरा रोमेश शर्मा से किसी भी तरह का कोई रिश्ता नहीं। फोटो में रोमेश शर्मा के साथ मैं नहीं हूँ। कंप्यूटर ग्राफिक्स तकनीक की मदद से मेरे फ़र्जी आपत्तिजनक पोस्टर छपवा कर मेरा चरित्र हनन करने की साज़िश की जा रही है। यह महिला और एक मुख्यमंत्री का अपमान है।'
बीजेपी के मूल मुद्दों पर जॉर्ज से भिड़ंत
एक बार सुषमा स्वराज बीजेपी के मूल मुद्दे यानी अनुच्छेद 370, अयोध्या और समान नागरिक संहिता पर अपने राजनीतिक गुरु जार्ज फर्नांडीस से भिड़ गई थींं। बात 1997 की है। इंद्र कुमार गुजराल सरकार दम तोड़ रही थी। लोकसभा के मध्यावधि चुनावों की आहट थी। बीजेपी सत्ता में आने के लिए नए साथी तलाश रही थी। उस वक़्त तक बीजेपी के साथ सिर्फ़ शिवसेना, अकाली दल और समता पार्टी ही थींं।
ऐसे में एक दिन सुषमा स्वराज ने टीवी चैनलों को यह बयान दे दिया कि बीजेपी के जितने भी सहयोगी हैं वे उनके मूल मुद्दों से पूरी तरह वाकिफ़ हैं और उन पर उनकी सहमति है। सुषमा के इस बयान पर जार्ज फर्नांडीज आग बबूला हो गए। बीपी हाउस के 220 नंबर फ्लैट में स्थित का समता पार्टी के दफ़्तर में प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर जॉर्ज फर्नांडीज ने सुषमा के इस दावे का खंडन किया। जॉर्ज ने ज़ोर देकर दो टूक कहा, 'बीजेपी और उसके नए-नए नेता किसी से ग़लतफहमी में ना रहें। हम बीजेपी के साथ होते हुए भी मरते दम तक बीजेपी को उसके इन तीन मुद्दों पर अमल नहीं करने देंगे।' इस भिड़ंत का नतीजा यह हुआ कि बीजेपी ने 1998 के लोकसभा चुनाव में अपना घोषणा पत्र ही जारी नहीं किया था।
अयोध्या मुद्दे की तुलना की थी बैंक के चेक से
सुषमा स्वराज ने एक बार अयोध्या मुद्दे की तुलना बैंक के चेक से कर दी थी। यह बात भी 1998 के लोकसभा चुनाव से पहले की है। तब इस बात पर सस्पेंस बना हुआ था कि बीजेपी का घोषणा पत्र आएगा कि नहीं। बीजेपी की प्रेस कॉन्फ्रेंस में उस वक़्त सुषमा स्वराज से इन पंक्तियों के लेखक ने ही सवाल पूछा था कि क्या बीजेपी के घोषणापत्र में अयोध्या का मुद्दा होगा? इस पर सुषमा स्वराज ने तपाक से जवाब दिया, एक चेक एक ही बार कैश होता है। यह चेक हम कैश कर चुके हैं।' सुषमा की यह बात सुनकर प्रेस कॉन्फ्रेंस हॉल में कुछ पल के लिए तो सन्नाटा छा गया था लेकिन बाद में सभी ठहाका मारकर हँस पड़े थे।
सुषमा स्वराज की ख़ासियत थी कि जिससे भी मिलती थीं बड़े अपनेपन से मिलती थींं। न सिर्फ़ उसके हालचाल पूछती थींं बल्कि उसके परिवार वालों के भी हालचाल पूछ लिया करती थीं। कभी-कभी तो पत्रकारों से भी उनकी पत्नी और बच्चों के नाम लेकर पूछ लेती थींं कि वे कैसे हैं। उनके अपनेपन के सभी क़ायल रहे हैं। 'अपनापन' फ़िल्म का बड़ा मशहूर गाना है 'आदमी मुसाफिर है, आता है जाता है, आते जाते रास्ते में, यादें छोड़ जाता है।'
सुषमा स्वराज भी इस दुनिया में अपना सफ़र पूरा करके चली गईंं। उनकी बातें रह गईं हैं। उनकी यादें शेष हैं। वे हमेशा रहेंगी। कड़े संघर्ष और ख़ुद के बलबूते राजनीति में ऊँचा मक़ाम हासिल करने वालींं दिवंगत सुषमा स्वराज को दिल की गहराइयों से नमन! विनम्र श्रद्धांजलि!
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