आँखों में तूफान!
क्या हुआ इस बार? इस बार केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 में महत्वपूर्ण बदलाव कर जम्मू-कश्मीर को मिल रहे विशेष दर्जे को ख़त्म कर दिया। अब यह दो टुकड़ों में बँट जाएगा और दोनों ही केंद्र शासित क्षेत्र हो जाएंगे। तो क्या हुआ? यह तो अस्थायी प्रावधान था, जो एक न एक दिन ख़त्म होना ही था, सत्तारूढ़ दल का तो यही तर्क है।उन्होंने कहा, 'यह बहुत बड़ा आघात है। इस एकतरफा फ़ैसले पर प्रतिक्रिया होगी, 1846 के अमृतसर समझौते के बाद लोगों के अधिकार छीनने का सबसे बड़ा कदम है, उस समझौते के तहत कश्मीरियों की ज़मीन, उनका पानी, आसमान सब कुछ बेच दिया गया था।'
दुनिया से कटे हुए
घाटी को बाहरी दुनिया से काट दिया गया है. इंटरनेट कनेक्शन, मोबाइल फ़ोन, लैंडलाइन फ़ोन, केबल टीवी, सब कुछ ठप कर दिया गया है। लोगों को अपने पास पड़ोस के लोगों से भी मिलने नहीं दिया जा रहा है। प्रशासन ने अपन कर्मचारियों और सुरक्षा बल के लोगों को भी कर्फ़्यू पास नहीं दिया है, सरकारी पहचान पत्र को स्वीकार नहीं किया जा रहा है।बिफरे हुए लोग
ज़्यादातर सरकारी मकान, स्कूल-कॉलेज, अदालत, सुरक्षा बल वालों के कब्जे में हैं, वे वहाँ रह रहे हैं। इंडियन एक्सप्रेस ने स्थानीय लोगों से बात कर उनके मन की थाह लेने की कोशिश की। अधिकतर लोग बिफरे हुए हैं, उनमें अविश्वास की भावना भरी हुई है। उन्हें लगता है कि केंद्र के इस फ़ैसले से राज्य में जनसंख्या अनुपात बदल जाएगा, यहाँ भी आबादी में मुसलमानों का अनुपात कम हो जाएगा।
पूरी घाटी में भारत का समर्थन करने वाले लोग परेशान हैं, चुप हैं, स्तब्ध हैं। अलगाववादियों की बात गूंज रही है, हमने तो पहले ही कह दिया था कि ऐसा होगा, वही हुआ।
चुप हैं भारत समर्थक
पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के एक स्थानीय नेता ने कहा, 'सरकार ने उन लोगों को निराश किया है, जो अपने ही लोगों असहमत थे, जिन्होंने अपना ख़ून बहाया था क्योंकि वे धर्मनिरपेक्ष भारत में यकीन करते थे और धर्मनिरपेक्ष भारत मे ही रहना चाहते थे।'बेबस लोग!
कश्मीर विश्वविद्यालय के मुहम्मद उमर ने कहा, 'जिस तर्क पर वे 70 से टिके हुए थे, वह संसद में 15 मिनट में धाराशायी कर दिया गया। नेताओं के पास कहने को कुछ नहीं है, वे बस इतना कर सकते हैं कि माफ़ी माँगे और उनके साथ खड़े हो जाएँ।'“
'मेरे पिता भारत के सिद्धांतों के लिए मारे गए और मैं इन्हीं सिद्धांतों के लिए राजनीति में आया। उन्होंने आतंकवादियों की गोलियाँ खाईं क्योंकि उन्हें लगता था कि धर्मनिरपेक्ष भारत में कश्मीर सुरक्षित है। ताजा़ फ़ैसले के बाद मैं अपने ही फ़ैसले पर सवाल खड़े करता हूँ।'
नेशनल कॉन्फ़्रेंस का एक कार्यकर्ता
पीडीपी नेता ने कहा, 'एनआईए और एनफ़ोर्समेंट डाइरेक्टरेट जैसी एजंसियों के ज़रिए पहले तो वे अलगाववादियों को परेशान करते थे, हमें लगता था कि वे उन अलगाववादियों को अलग थलग करना चाहते हैं। पर अब तो वे हम तक पहुँच गए, जिन लोगों ने 70 साल तक तिरंगा उठाए रखा, जो कश्मीर में असली भारतीय हैं, उन तक वे पहुँच गए।'
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