हिंदी पत्रकारिता में हरिवंश उत्तर से चले थे। अब दक्खिन पहुँच गए हैं। पर इस यात्रा में उन्होंने जो पुण्य कमाया था वह गवाँ तो नहीं दिया? समाजवादी धारा वाले रहे। युवा तुर्क चंद्रशेखर का कामकाज संभाला तो बहुत सी पत्र-पत्रिकाओं को भी संभाला। प्रभात ख़बर जैसे क्षेत्रीय अख़बार को राष्ट्र्रीय फलक पर भी ले आए। उन्हें उनकी पत्रकारिता के लिए याद किया जाता रहा है आगे भी याद किया जाएगा। ख़ासकर प्रभात ख़बर को लेकर उनका बड़ा योगदान तो था ही।
संपादक से सांसद, उप सभापति बने; अब राष्ट्रपति पद के रास्ते पर हरिवंश!
- विचार
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- 21 Sep, 2020

कृषि विधेयकों पर राज्यसभा में समूची सरकार फँसी हुई थी, ऐसे में हरिवंश उसके संकटमोचक बन कर उभरे हैं। उन्होंने सदन की तरफ़ बिना आँख उठाए एक झटके में उस सरकार को उबार दिया जिसकी साँस अटकी हुई थी। यह कोई मामूली बात तो नहीं है।
इसे सभी मानते हैं। पर जब उन्होंने इस अख़बार को छोड़ा तो प्रभात ख़बर ने अपने संपादक के हटने की ख़बर पहले पेज पर चार कॉलम बॉक्स के रूप में प्रकाशित की। अख़बारों में संपादक आते जाते रहते हैं पर कोई किसी संपादक के जाने की ख़बर इतनी प्रमुखता से नहीं छापता है। पर यह उसी अख़बार में हुआ जिसे उन्होंने गढ़ा था। बाद में एक पत्रकार ने बताया कि यह इसलिए प्रकाशित किया गया ताकि सब यह जान जाएँ कि हरिवंश का अब प्रभात ख़बर से कोई संबंध नहीं है। इसकी कुछ वजह ज़रूर होगी पर वह मुद्दा नहीं है। मुद्दा यह है कि आपने कैसे मूल्य अपनी पत्रकारिता और अपने उत्तराधिकारियों को दिए जो यह सब हुआ।