दक्षिणपंथी राजनीति झूठ और अफ़वाह के घोड़े पर सवार हो सरपट भागती है। इतिहास को झुठलाना उसके चरित्र का अहम हिस्सा होता है। इतिहास से उसकी शिकायत, और उससे उपजी पीड़ा उसकी आक्रामकता को खाद देती है। और यह महज़ इत्तिफ़ाक़ नहीं है कि साम्यवाद के पतन और उदारवाद के कमजोर होने के बाद दुनिया में दक्षिणपंथ एक बार फिर मज़बूत हो रहा है। भारत भी उससे अछूता नहीं है। वैसे तो दक्षिणपंथ एक विचार है जो विवेक की जगह भावनाओं को ज़्यादा तरजीह देता है। भावनाओं का ज्वार अक्सर इतिहास की नये सिरे से व्याख्या करता है। भारत में भी इतिहास के नवीनीकरण की कोशिश की जा रही है। इस योजना में सावरकर को लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया है। इस विवाद की जड़ में है रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का बयान