पचहत्तरवें स्वतंत्रता दिवस पर लाल क़िले की प्राचीर से अपने सम्बोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की जनता को उन तमाम महत्वपूर्ण फ़ैसलों की जानकारी दी जो उनकी सरकार द्वारा पिछले दिनों लिए गए हैं। इस अवसर पर उन्होंने टोक्यो ओलंपिक से पदक जीतकर लौटे खिलाड़ियों का ताली बजकर सम्मान भी किया। पर सरकार द्वारा लिए गए कई निर्णयों में इस एक जानकारी को साझा करना सम्भवतः छूट गया कि तीस साल पहले स्थापित एक प्रतिष्ठित खेल रत्न पुरस्कार की पहचान को बदलने के लिए एक सौम्य व्यक्तित्व के धनी, आतंकवाद का शिकार हुए एक पूर्व प्रधानमंत्री और सर्वोच्च अलंकरण ‘भारत रत्न‘ से विभूषित व्यक्ति के नाम का चयन क्यों किया गया!
देशवासियों के नाम पर नाम बदलने का 'खेला'!
- विचार
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- 16 Aug, 2021

शासकों को हक़ हासिल रहता है कि वे अपनी जनता के नाम, पते, और कामों को देश की ज़रूरत के मुताबिक़ बदल सकें। इतिहास में ऐसे उदाहरण भी तलाशे जा सकते हैं। इस समय तो देश में सब कुछ ही बदला जा रहा है। सिर्फ़ पुरस्कारों के नाम ही नहीं, शहरों, सड़कों और इमारतों के नाम, किताबें, पाठ्यक्रम, आदि सभी कुछ।
हॉकी के जादूगर और लोगों के दिलों पर राज करने वाले मेजर ध्यानचंद, जिनके नाम पर अब यह पुरस्कार कर दिया गया है, अगर आज हमारे बीच होते तो किस तरह की प्रतिक्रिया देते, कहा नहीं जा सकता पर उनके बेटे और प्रसिद्ध हॉकी खिलाड़ी अशोक ध्यानचंद ने सरकार के फ़ैसले का स्वागत किया है।