2014 से पहले जब नरेंद्र मोदी सत्ता में आने की तैयारी कर रहे थे; तब, और फिर सत्ता में आने के बाद से, लगातार बीजेपी ने इस नैरेटिव पर काम किया कि देश के किसी भी दूसरे नेता की छवि को या तो नरेंद्र मोदी से आगे दिखने से रोक दिया जाए या अन्य तरीक़े से उस नेता की छवि को कमजोर किया जाए। ऐसा करने के लिए या तो कोई भ्रष्टाचार और अन्य मुद्दे से टारगेट किया जाए और ऐसा करना संभव न हो तो किसी अन्य तरीके से कम से कम उस नेता की छवि पर मीडिया का सहारा लेकर कोई दाग धब्बा तो लगाया ही जा सकता है। कभी भाषणों को गलत इरादे से छेड़छाड़ (काट कर, आधा अधूरा) करके, तो कभी हजारों बेरोजगारों की ऐसी फौज के माध्यम से जो लगातार, बार बार कुछ पैसों के लिए सिर्फ गाली-गलौज की भाषा का इस्तेमाल करें और नेताओं की अच्छी छवि को लगातार सोशल मीडिया में खराब कर सकें।
राहुल गांधी और पीएम मोदी कैसे करते हैं एक दूसरे का सामना?
- विचार
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- 26 Feb, 2024

राहुल गांधी भारत जोड़ो न्याय यात्रा का वास्तविक मक़सद क्या है? क्या लोकसभा चुनाव में ही जीत दर्ज करने की कोशिश करना? या फिर भारत की विविधता, एकता, लोकतंत्र जैसे विचारों के लिए लड़ना?
राहुल गाँधी वैसे ही एक नेता हैं जिनसे बीजेपी को सबसे ज़्यादा ख़तरा है। लेकिन जिस तरह एक डरपोक व्यक्ति अंधेरे में शोर मचाता हुआ चलता है, गुर्राता है अंदर से वह काँपता है, पर उसके अंदर का भय उसे थोड़ी देर के लिए महसूस न हो उसके लिए वह दौड़ भी लगाता है, वैसे ही बीजेपी ने राहुल गाँधी को लेकर किया। इससे पहले कि राहुल गाँधी का भय बीजेपी पर हावी होता उन्होंने पहले से ही बड़बड़ाना भी शुरू कर दिया। राहुल गाँधी के विषय में अभद्र टिप्पणियाँ की गईं, तब तक की गईं जब तक आश्वस्त नहीं हुए कि अब यह फैल गया है, उसके लिए उन्होंने सोशल मीडिया, मैसेजिंग ऐप का बड़े स्तर पर सहारा लिया, अखबारों में राहुल गाँधी की कोई न्यूज न आए, यह भी पाठकों द्वारा महसूस किया गया। सिर्फ राहुल गाँधी को बदनाम करने के लिए एक नाम ‘पप्पू’ को जहरीला और घृणा का प्रतीक बना दिया गया। भारत के हर एक कोने में यह नाम माता-पिता अपने बच्चों के लिए प्रेम से रखते आए हैं लेकिन बीजेपी की नीति ने इस नाम और इसको धारण करने वाले सभी को सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए बदनाम कर दिया।