महामारी ऐसा संकटकाल है जिससे हम उम्मीद तो यही करते हैं कि इससे विज्ञान और आधुनिक चिकित्सा पर लोगों का विश्वास बढ़ेगा लेकिन कई बार इसका उलटा होता हुआ भी दिखता है। कई बार अचानक ही वैज्ञानिक सोच अपने ज्ञान की सीमाओं को समझते हुए बेबस खड़ी दिखाई देती है और अवैज्ञानिक सोच हंगामा करने लगती है।

महामारी में नीम हकीम आधुनिक चिकित्सा पद्धति का विरोध करने लगते हैं और इलाज के पक्के दावे करने लगते हैं। ऐसे समय में आधुनिक चिकित्सा पर विश्वास बढ़ना चाहिए।
इसे ज़्यादा अच्छी तरह से समझना हो तो हमें 19वीं सदी के अंत में आ धमकने वाले प्लेग को देखना होगा। प्लेग ने जब दस्तक दी और मुंबई के अस्पतालों में बड़ी संख्या में लोग मरने लगे तो लोगों को यह धारणा देने की कोशिशें भी होने लगीं कि अस्पताल में किसी को ले जाने का अर्थ है उसे मौत के मुँह में धकेलना। मरीज़ों को लोग अस्पताल में ले जाने से बचने लगे। अब उनके पास एक ही आसरा था शहर के नीम-हकीम। महामारी में नीम-हकीमों की उन दिनों बन आई थी।