तीन विवादास्पद कृषि क़ानूनों को वापस लेने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के बाद पंजाब की राजनीति में दिलचस्प मोड़ आ सकता है। हालाँकि भारतीय जनता पार्टी का पंजाब में कुछ भी दांव पर नहीं है। लेकिन उसका मुख्य लक्ष्य किसी भी तरह कांग्रेस की सत्ता में वापसी रोकना है। अपने इस लक्ष्य को पाने के लिए वह अपने पुराने सहयोगी शिरोमणि अकाली दल को फिर से अपने साथ ला सकती है और कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी बनाने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह का हाथ भी थाम सकती है। अगर ऐसा होता है तो लगातार दूसरी बार सत्ता पर काबिज होने का ख्वाब देख रही कांग्रेस और पंजाब में पहली बार सरकार बनाने की हसरत पाले बैठी आम आदमी पार्टी को कड़ी चुनौती मिल सकती है।

कृषि क़ानूनों की वापसी से पंजाब में क्या राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं? अमरिंदर सिंह तो पहले ही बीजेपी के साथ तालमेल करने की घोषणा कर चुके हैं, अब क्या अकाली दल भी ऐसा करेगा?
बीजेपी जनसंघ के जमाने से ही पंजाब में अकाली दल की सहयोगी की भूमिका में रही है। हालाँकि वहाँ बीजेपी का संगठनात्मक तौर पर आधार बेहद कमज़ोर है, लेकिन सूबे की 38% हिंदू आबादी के एक बड़े हिस्से का उसको समर्थन मिलता रहा है। लेकिन अकेले चुनाव मैदान में उतरने पर यह समर्थन उसे चुनावी सफलता नहीं दिला सकता। चुनावी सफलता के लिये ज़रूरी है कि उसे सिक्खों का भी समर्थन मिले।