कहा जाता है कि लोकतंत्र दुनिया की सबसे आदर्श व्यवस्था होती है जिसमें लोग अपनी सरकार ख़ुद चुनते हैं और वह सरकार उन लोगों की भलाई के लिये काम करती है। लेकिन जिस तरह का लोकतंत्र हमारे देश में देखने को मिल रहा है, वहां लोग अब महज आंकड़ों में सिमटते जा रहे हैं। इन आंकड़ों को साधकर सत्ता की सीढ़ियां चढ़ी जा रहीं हैं और इन सीढ़ियों को चढ़कर सत्तासीन होने वाले लोगों के कानों में वे आवाज़ें ही नहीं सुनाई देतीं। लोकतंत्र में जनता का विश्वास जीतने की बात अब उनका विश्वास छीनने जैसी लगने लगी है। इस विश्वास का अपहरण होते देख भी जनता ख़ामोश है?