राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भारत की न्याय-प्रणाली के बारे में ऐसी बातें कह दी हैं, जो आज तक किसी राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री ने नहीं कही। वे जबलपुर में न्यायाधीशों के एक समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने क़ानून, न्याय और अदालतों के बारे में इतने पते की बातें यों ही नहीं कह दी हैं। वह स्वयं लगभग 50 साल पहले जब कानपुर से दिल्ली आए तो उन्होंने क़ानून की शिक्षा ली थी। राजनीति में आने के पहले वह ख़ुद वकालत करते थे। उन्हें अदालतों के अंदरुनी दांव-पेंचों की जितनी जानकारी है, प्रायः कम ही नेताओं को होती है।
अदालतों में अंग्रेज़ी की ग़ुलामी; देश ऐसे कैसे बनेगा महाशक्ति?
- विचार
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- 8 Mar, 2021

भारत—जैसे 60-70 पुराने ग़ुलाम देशों के अलावा सभी देशों में सारे क़ानून और फ़ैसले उनकी अपनी भाषा में ही होते हैं। कोई भी महाशक्ति राष्ट्र अपने क़ानून और न्याय को विदेशी भाषा में संचालित नहीं करता है। भारत का न्याय जादू-टोना बना हुआ है। वादी और प्रतिवादी को समझ ही नहीं पड़ता है कि अदालत की बहस और फ़ैसले में क्या-क्या कहा जा रहा है।