मुझे अपने पत्रकार होने पर जितना गर्व आज नहीं है जितना की कवि होने पर है। हालाँकि मै रजिस्टर्ड कवि नहीं हूँ। बिहार के राज्यसभा सांसद मनोज झा ने राज्यसभा में नारी शक्ति वंदन विधेयक पर बहस कि दौरान ओमप्रकाश बाल्मीक की कविता पढ़कर जो कमाया है उसे देखकर मुझे एक बार फिर महसूस हो रहा है कि कविता का ' अम्ल ' अभी कायम है । फिर कविता चाहे ओमप्रकाश बाल्मीक लिखें या असंग घोषया राकेश अचल।
मनोज झा के कविता वंदन से इतनी मिर्च क्यों लग गई?
- विचार
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- 29 Mar, 2025
आरजेडी सांसद मनोज झा ने संसद में एक कविता क्या पढ़ दी, बिहार में मामला जातिवादी हो गया। इससे यह साबित हुआ कि कविता का असर होता है। मनोज झा ने जो कविता पढ़ी, वो उनकी अपनी नहीं थी। उन्होंने ओमप्रकाश बाल्मीकि की कविता पढ़ी थी। कविताएं हर देश में हर युग में महत्वपूर्ण रही हैं। कविताएं क्रांति कर सकती हैं। राकेश अचल के इस उद्गार को पढ़िए और फिर उसके बाद कोई अच्छी सी कविता तलाश कर पढ़िए। मुमकिन हो तो सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, फैज अहमद फैज और अदम गोंडवी को पढ़िए।
