सुधिजन अवश्य प्रश्न करेंगे कि विकास दुबे पुलिस हिरासत से नहीं भागेगा, इस बात पर पुलिस इतनी आश्वस्त क्यों थी? उन्होंने छोटे-मोटे जेबकतरों को हथकड़ी पहन कर सड़कों से गुज़रते देखा है इसलिए वे अवश्य यह प्रश्न पूछना चाहेंगे कि इतने खूँखार अपराधी को हथकड़ी डाल कर क्यों नहीं ले जाया गया? यदि ऐसा होता तो दुर्घटना की स्थिति में वह इन्स्पेक्टर की पिस्तौल छीन कर न भाग पाता। स्क्रिप्ट में जवाब हाज़िर है- ‘अभियुक्त को सीधे कानपुर न्यायालय में ले जाने के लिए 15 पुलिस कर्मी और 3 गाड़ियाँ थीं। 24 घंटे की मियाद पूरी होने से पहले उसे हर हाल में 10 जुलाई 10 बजे प्रातः तक कोर्ट में पेश करना था।’ यानी? यानी अगर हथकड़ी वगैरह पहनाने का झंझट किया जाता तो देर हो जाती? या फिर कोर्ट में हथकड़ी डाल कर ले जाना आपत्तिजनक होता? हथकड़ी में सीधे कोर्ट तक ले जाना और वहाँ हथकड़ी खोलना कोई नया चलन नहीं है। पुलिस अधिकारियों के लिए 'राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग' का मैनुअल और सर्वोच्च अदालत के स्पष्ट दिशा निर्देश हैं कि पुलिस उन लोगों को हथकड़ी पहना सकती है जो ‘किसी मामले में सज़ायाफ्ता हों, ख़तरनाक चरित्र वाले हों जिनके आत्महत्या करने की संभावना हो या जो भागने की कोशिश कर सकते हों।’
विकास दुबे कांड: एफ़िडेविट की ऐसी स्क्रिप्ट- देर न हो जाए इसलिए हथकड़ी नहीं पहनाई?
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- 23 Jul, 2020

गैंगस्टर विकास दुबे 'एनकाउंटर' मामले में उत्तर प्रदेश के डीजीपी एचसी अवस्थी द्वारा 'सर्वोच्च न्यायालय' के समक्ष 16 जुलाई 2020 को दायर 58 पेज का यह एफ़िडेविट एक मुम्बइया फ़िल्मी कथा की भाँति हमारे सामने से गुज़रता है। फ़िल्म किस ग्रेड की निकली, इसका फ़ैसला सुधि 'दर्शकों' के विवेक पर छोड़ते हैं, वे इसका आकलन कथा की समाप्ति पर कर सकते हैं। पढ़िए इसकी दूसरी कड़ी। पहली कड़ी पहले ही प्रकाशित की जा चुकी है।