क्या इस परिदृश्य पर कोई आश्चर्य व्यक्त नहीं किया जाना चाहिए कि इतनी ज़बरदस्त एंटी-इंकम्बेंसी के होते हुए भी चुनावी सर्वेक्षणों में भाजपा को 2019 के चुनावों से भी अधिक सीटें प्राप्त होने के दावे प्रधानमंत्री के आत्मविश्वास और उनकी सभाओं में जमा होने वाली जनता के चेहरों पर नज़र नहीं आ रहे हैं! प्रधानमंत्री की लोकप्रियता में आई कमी को चाहे जिस अज्ञात भय के चलते सर्वेक्षणकर्ता एजेंसियों द्वारा नहीं उजागर किया जा रहा हो, उन्हें इतना तो बताना ही पड़ रहा है कि राहुल गांधी का सफ़ेद बाल होता माथा मोदीजी के कंधों तक तो पहुँच ही गया है!