दो वकील पुत्रों का पिता होने के नाते मुझे अक्सर कुछ क़ानूनी विरोधाभासों को जानने और समझने का अवसर मिलता रहता है। क़ानून की दुनिया में प्रयुक्त होने वाला एक महत्वपूर्ण शब्द है ‘रिज़नेबल मैन’, जिसे आप आम बोलचाल की भाषा में ‘विवेकशील, नीतिज्ञ, या तर्कशील-सत्यनिष्ठ आदि विशेषणों से निरुपित कर सकते हैं।
किसान आंदोलन: सरकार की नज़र में हम गुमराह हैं
- विचार
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- 16 Dec, 2020

सरकार को यह महसूस करना चाहिए कि भारत में क़ानून बनाना कठिन है, क्योंकि इसमें जनता की भागीदारी की आवश्यकता है। अगर क़ानून बनाने के क्रम में जनता की भागीदारी सुनिश्चित नहीं की जाएगी तो उसके सामने शांतिपूर्ण विरोध ही अंतिम रास्ता होगा। क़ानून बनाने के क्रम में सरकार के सामने पहला विकल्प- निर्णय लेने की प्रक्रिया में हितधारकों को शामिल करना है।
न्यायालयों में न्यायधीशों द्वारा दिए निर्णयों तथा कतिपय क़ानूनी प्रावधानों में ‘रिज़नेबल मैन’ की विशेषताओं को एक मानक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि ‘रिज़नेबल मैन’ के इस तथाकथित मानक आचरण को एक अकाट्य- अंतिम सत्य के रूप में आम जनता के मन मस्तिष्क में स्थापित करने का प्रयास किया जाता है, तथा इसी ‘रिजनेबल मैन’ या ‘वीमेन’ की विशेषताओं को एक मापदंड के रूप में इस्तेमाल कर अन्य लोगों के आचरण को ‘रिज़नेबल मैन’ की कसौटी पर कसा जाता है। इसी जाँच के क्रम में वैसे आचरण जो इस रिज़नेबल मैन के आचरण की कसौटी पर खरे नहीं उतरते, न्यायिक या क़ानूनी जाँच के घेरे में आ जाते हैं।
भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी डॉ. अजय कुमार कांग्रेस से जुड़े हुए हैं। वह समसामयिक विषयों पर लिखते रहते हैं।