2001 में न्यूयार्क और वाशिंगटन की इमारतों को यात्री विमानों से तहस-नहस कर देने वाले 9/11 के कुख्यात आतंकवादी हमलों के बाद अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के विभिन्न ठिकानों पर मिसाइल से हमले किये थे। तब से 19 सालों तक तालिबान के ख़िलाफ़ लड़ते हुए 24 सौ से अधिक अमेरिकी सैनिकों को अपनी जान गंवानी पड़ी। इस दौरान अमेरिका को दस ख़रब डालर ख़र्च करने पड़े। लेकिन अमेरिका आज उसी तालिबान के साथ समझौता कर अफ़ग़ानिस्तान से अपनी जान छुड़ा कर भागने के लिये मजबूर है।
अमेरिका के लिये आत्मघाती साबित होगा तालिबान से समझौता करना?
- विचार
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- 1 Mar, 2020

क्या तालिबान के साथ शांति समझौता करना अमेरिका के लिये आत्मघाती साबित होगा और क्या इससे भारत की भी मुश्किलें बढ़ेंगी?
कतर में शनिवार को अमेरिका और तालिबान के बीच जो शांति समझौता हुआ है उसके तहत अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान में अपने सैनिकों की संख्या 13 हजार से घटाकर 8,600 पर लाने की सहमति दी है और इसके साथ अफ़ग़ानिस्तान सरकार से कहा है कि वह अफ़ग़ानी जेलों से पांच हजार तालिबानियों को रिहा कर दे। बदले में तालिबान ने अमेरिका को वचन दिया है कि वह अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका या उसके साथी देशों के ठिकानों पर हमले नहीं करेगा।