अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के 24 और 25 फ़रवरी को अहमदाबाद और नई दिल्ली दौरे के बाद भारत और अमेरिका ने आर्थिक या सामरिक क्षेत्र में किसी नाटकीय समझौते की घोषणा या कोई सहमति का एलान तो नहीं किया लेकिन इससे राष्ट्रपति ट्रंप के भारत दौरे की अहमियत कम नहीं हो जाती। राष्ट्रपति ट्रंप के भारत दौरे से उन्हें और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को होने वाले निजी राजनीतिक लाभों की बात छोड़ दें तो हम भारत और अमेरिका के बीच सामरिक साझेदारी के रिश्तों को आगे बढ़ने से नहीं रोक सकते। पिछले साल ह्यूस्टन और अहमदाबाद के मोटेरा स्टेडियम में राष्ट्रपति ट्रंप और प्रधानमंत्री मोदी ने एक-दूसरे की तारीफों के पुल बांध कर परस्पर सराहना क्लब ज़रूर बनाया लेकिन इससे आपसी रिश्तों को छोटा कर नहीं देखा जा सकता। 21वीं सदी के मौजूदा विश्व सामरिक समीकरण में भारत और अमेरिका का साथ आना स्वाभाविक ही कहा जा सकता है। वास्तव में भारत और अमेरिका को भी मौजूदा विश्व माहौल में एक-दूसरे के साथ खड़ा होने की ज़रूरत है। 1999 में करगिल युद्ध के बाद जिस तरह अमेरिका ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ भारत का साथ दिया और पिछले दशक के मध्य में राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के काल में जिस तरह भारत को दुनिया की परमाणु मुख्यधारा में शामिल होने का मौक़ा अमेरिका ने दिलवाया वे भारत के दीर्घकालिक राष्ट्रीय हितों के लिए काफ़ी अहम साबित हुए हैं।
अपना फायदा छोड़ क्या आर्थिक मजबूरी में भारत का साथ देंगे ट्रंप?
- विचार
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- 2 Mar, 2020

मोदी-ट्रंप साझा बयान में हिंद प्रशांत समुद्री इलाक़े के साथ हिंद महासागर में शांति व स्थिरता सुनिश्चित करने में भारत की अहम भूमिका पर ज़ोर दिया गया है। लेकिन अफ़ग़ानिस्तान में भारत की अब तक हुई रचनात्मक भूमिका को अमेरिका द्वारा नज़रअंदाज़ करना भारत को ज़रूर खटक रहा है।