एक तरफ दिल्ली की जामा मसजिद के इमाम ने कुछ दिनों के लिए मसजिद बंद कर दी, इसके बावजूद कि सरकार ने सारे पूजा-स्थल खोल दिए हैं और दूसरी तरफ हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान के प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने भारत को सुझाव दिया है कि वह कोरोना से कैसे लड़े।
इमरान ख़ान ने नरेंद्र मोदी को सीख दी है कि वे भारत के ज़रूरतमंदों को वैसे ही नक़द रुपये बांटें, जैसे कि उन्होंने बांटे हैं। इमरान के बयान से यह ध्वनि भी निकल रही है कि पाकिस्तान इस मामले में भारत की मदद भी कर सकता है।
इमरान ने यदि पाकिस्तान के एक करोड़ परिवारों को 12000 करोड़ रुपये सीधे पहुंचवा दिए तो यह उन्होंने अच्छा किया। मैं भी हमारी सरकारों से मार्च के महीने से कह रहा हूं कि ब्रिटेन, जर्मनी, कनाडा और अमेरिका की तरह वे भी अपने बेरोज़गार लोगों को नकद राशि भिजवाने का इंतजाम करें लेकिन इमरान के कहने में व्यंग्य की झलक ज्यादा है।
पहली बात तो यह है कि इस वक्त भारत और पाकिस्तान के रिश्तों की जो हालत है, उसमें इस तरह के सुझावों की कोई गुंजाइश न इधर से है और न ही उधर से है। दूसरी बात यह कि 12000 करोड़ रुपये क्या हैं? कुछ भी नहीं। एक करोड़ परिवारों को 12000 करोड़ मतलब एक परिवार को 12000 रुपये यानी प्रति व्यक्ति 2000 या 2500 रुपये!
दुनिया की अर्थ-व्यवस्थाओं में भारत का स्थान 5 वां है जबकि पाकिस्तान का 39 वां है। पाकिस्तान विदेशी कर्जों के बोझ के नीचे दबा जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं उस पर दबाव बना रही हैं।
इमरान ख़ान जैसे स्वाभिमानी और संपन्न आदमी को प्रधानमंत्री बनते ही झोली फैलाकर सउदी अरब और दुबई के आगे गिड़गिड़ाना पड़ा है। उन्होंने पाकिस्तान में पानी की कमी को दूर करने और बांध बनाने के लिए विदेशों में बसे पाकिस्तानियों से दान मांगने में भी संकोच नहीं किया था।
यदि सचमुच इमरान ख़ान के इरादे नेक हैं तो उन्हें चाहिए था कि वे मोदी को फोन करते और यह सुझाव देते। और मुसीबत की इस घड़ी में पाकिस्तान के लिए भी मदद मांगते लेकिन इस बयान पर भारत के विदेश मंत्रालय को तीखा व्यंग्यात्मक बयान जारी करना पड़ा है।
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