‘मुझे मालूम है, दो-तीन पेशेंट तीन चार घंटों में मर जायेंगे। आख़िरी साँस ले रहे हैं। आप अपने पेशेंट को चार पाँच बजे सुबह लेकर आइए। शायद बेड खाली मिल जाएगा। हम आपके पेशेंट को भर्ती कर लेंगे।’ लखनऊ के एक प्रतिष्ठित अस्पताल के एक वरिष्ठ डॉक्टर से ये जवाब सुनकर मैं अवाक रह गया। डॉक्टर से कोरोना के एक गंभीर रोगी को अस्पताल में भर्ती करने की बात हो रही थी। डॉक्टर ने बताया कि अस्पताल में भर्ती होने वाले ज़्यादातर रोगियों को सिर्फ़ ऑक्सीजन की ज़रूरत है, लेकिन इसका कोई इंतज़ाम नहीं किया गया।

अब यह साबित हो गया है कि वायरस के चलते किसी की मौत नहीं होती है। जब वायरस हमारे शरीर में सक्रिय होता है तब उसे ख़त्म करने के लिए हमारा शरीर साइटोकिन नाम का एक रसायन बनाता है। कुछ रोगियों में वायरस ख़त्म होने के बाद भी ये रसायन बनता रहता है। हमारा फेफड़ा साँस से अंदर पहुँचने वाली हवा में से ऑक्सीजन को अलग करके ख़ून में डालता है। साइटोकिन रसायन बढ़ने पर फेफड़ा यह काम बंद करने लगता है।
ऑक्सीजन की कमी से बहुत सारे रोगी गंभीर स्थिति में पहुँच रहे हैं। इसके चलते आईसीयू और वेंटिलेटर पर रोगियों की संख्या बढ़ रही है। डॉक्टर ने यह भी बताया कि ऑक्सीजन की व्यवस्था हो तो बहुत सारे रोगियों का घर पर ही इलाज हो सकता है। उनकी जान बचाई जा सकती है।
शैलेश कुमार न्यूज़ नेशन के सीईओ एवं प्रधान संपादक रह चुके हैं। उससे पहले उन्होंने देश के पहले चौबीस घंटा न्यूज़ चैनल - ज़ी न्यूज़ - के लॉन्च में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। टीवी टुडे में एग्ज़िक्युटिव प्रड्यूसर के तौर पर उन्होंने आजतक