जम्मू कश्मीर में लगभग एक साल हो गया है जब पाँच अगस्त 2019 को भयानक बदलाव किए गए। मुझे अभी भी यह विश्वास नहीं हो रहा है जो मैंने उस सुबह टेलीविजन चैनल पर अपनी आँखों से देखा था। कुछ घंटे पहले ही आधी रात को मुझे नज़रबंद कर दिया गया था और दिन बीतते-बीतते सरकारी गेस्टहाउस में शिफ़्ट किया जाना था। केंद्र सरकार के मनोनीत प्रतिनिधियों ने वो सारे अधिकार हथिया लिए जो विधानसभा और चुनी हुई लोकप्रिय सरकारों में निहित थे। और इस तरह से शेष भारत से जम्मू कश्मीर के संवैधानिक रिश्ते को नए सिरे से लिख दिया गया। देश की संसद में 70 साल से ज़्यादा के इतिहास को लोकसभा और राज्यसभा ने एक दिन से भी कम समय में बदल दिया और साथ ही जम्मू कश्मीर के लोगों से किए गए संप्रभु वायदे को भी तोड़ दिया गया और प्रदेश के टुकड़े कर दिए गए।
जब तक जम्मू कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश है, मैं विधानसभा चुनाव नहीं लड़ूँगा: उमर
- विचार
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- 28 Jul, 2020

1980 के उत्तरार्ध में पृथकतावादी राजनीति का विरोध करते हुए नेशनल कॉन्फ़्रेंस के हज़ारों कार्यकर्ता और पदाधिकारी आतंकवादी हिंसा का शिकार हुए। क्योंकि हमने मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टी होना तय किया था। जिस तरीक़े से एक सुनियोजित प्रचार मुख्यधारा के राजनीतिक दलों के ख़िलाफ़ सरकार के इशारे पर ज़्यादातर राष्ट्रीय मीडिया कर रहा है ऐसे में यह सवाल पूछना वाजिब है कि क्या यह बलिदान सही था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दोबारा चुने जाने के बाद से ये अफ़वाहें उड़ने लगी थीं कि बीजेपी लोकसभा में मिले बहुमत की आड़ में अनुच्छेद 370 और 35ए को ख़त्म कर देगी। यह आशंका तब और बलवती हो गई जब केंद्रीय अर्धसैनिक बल के ढेरों जवानों को श्रीनगर लाया गया और राज्य के अलग-अलग इलाक़ों में भेज दिया गया।
उमर अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री हैं और जम्मू कश्मीर नेशनल कॉन्फ़्रेंस के उपाध्यक्ष हैं।