कुछ साल पहले मैंने देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के एक सेवानिवृत्त बड़े अधिकारी से पूछा कि आपके राज्य में लाखों सरकारी पद खाली पड़े हैं, आप लोगों ने उन्हें भरने का प्रयास क्यों नहीं किया? उनका जवाब था, अगर हमने ये सारे पद भर दिये तो राज्य का कुछ ही वर्षों में दीवाला निकल जायेगा। विस्तार से बताते हुए उन्होंने कहा कि छठे और सातवें वेतन आयोग ने सरकारी कर्मियों की तनख्वाहें और पेंशन इतनी बढ़ा दी हैं कि सरकार का बजट तक डगमगा गया है। उनका कहना था कि जब एक चतुर्थ वर्गीय कर्मी की तनख्वाह प्राइवेट कंपनी में काम कर रहे एक मैनेजर के बराबर हो तो ऐसे में सरकारें जो बिना किसी प्रॉफिट के चलती हैं, कहां से इतना धन लायेंगी?
पुरानी पेंशन योजना, कहीं राज्यों का दिवाला न निकाल दे!
- विचार
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- 19 Jan, 2023

भारी क़र्ज़ तले दबीं राज्य सरकारें आख़िर पुरानी पेंशन योजना को फिर से लागू क्यों कर रही हैं? हज़ारों करोड़ का और बोझ पड़ने से क्या राज्य कंगाल होने की स्थिति में नहीं पहुँचेंगे?
वाजपेयी सरकार ने इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखकर पेंशन पर रोक लगा दी थी और नयी पेंशन स्कीम लागू की थी। सरकारी कर्मियों, विधायकों, सांसदों वगैरह की पेंशन पर हजारों करोड़ रुपये सरकारों के जा रहे थे जो निश्चित रूप से अनप्रॉडक्टिव था। छठे वेतन आयोग के बाद सरकार पर 20,000 करोड़ रुपये का बोझ आया लेकिन सातवें वेतन आयोग की अनुशंसा स्वीकार करने के बाद तो कर्मचारियों के वेतन और पेंशन के नाम पर जो बोझ पड़ा वह अकल्पनीय था। सरकार 1.02 लाख करोड़ रुपये के नीचे आ गई और नीति-निर्धारकों के पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई। इन कर्मचारियों में 50 लाख कार्यरत थे और 58 लाख पेंशनधारी थे।