स्वतंत्र भारत में जिन साम्प्रदायिक व विघटनवादी शक्तियों को कांग्रेस ने लगभग पचास वर्षों तक सत्ता के क़रीब आने का अवसर नहीं दिया वे भले ही ‘कांग्रेस-मुक्त भारत’ की अवधारणा अपने दिल में लिये बैठे हों, परन्तु हक़ीक़त तो यही है कि समयानुसार कांग्रेस पार्टी भी नए कलेवर, नए तेवर व नए नेतृत्व के साथ उभरती नज़र आ रही है। निश्चित रूप से इसी दौरान कांग्रेस कुछ ऐसे स्वार्थी नेताओं की वजह से आंतरिक उथल-पुथल के दौर से भी गुज़र रही है जो सत्ता के भूखे होने के साथ-साथ सिद्धांत व विचार विहीन भी हैं।
कांग्रेस में नेहरू-गांधी परिवार का कोई विकल्प है?
- विचार
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- 3 Oct, 2021

कांग्रेस संगठन को लेकर पिछले साल असंतुष्टों के समूह जी-23 के नेताओं ने जो सवाल उठाए थे उसकी गूंज अब कपिल सिब्बल के एक बयान से फिर से सुनाई देने लगी है। आख़िर ऐसा क्यों है? क्या कांग्रेस में नेतृत्व को लेकर कोई विकल्प है?
इसका अर्थ यह भी नहीं कि कांग्रेस इन चंद सत्ता लोभियों के पार्टी छोड़ने से समाप्त हो जायेगी। ब्रह्मानंद रेड्डी, देवराज अर्स जैसे कई विभाजन देखने व अनेकानेक दिग्गज नेताओं के किसी न किसी कारणवश पार्टी छोड़ने के बावजूद आज भी पार्टी देश के सबसे बड़े विपक्षी दल के रूप में क़ायम है। और इसका श्रेय सिर्फ़ और सिर्फ़ नेहरू-गांधी परिवार को ही जाता है। 2014 में कांग्रेस कैसे सत्ता से बाहर हुई, कैसे पचास वर्षों तक दर्जनों हिंदूवादी संगठनों द्वारा हिंदुत्ववाद के विस्तार व धर्म-जागरण के नाम पर देश में साम्प्रदायिकता का प्रचार-प्रसार कर, देश में ध्रुवीकरण की राजनीति कर तथा झूठ के रथ पर सवार होकर, अन्ना आंदोलन के कंधे पर बैठकर सत्ता हासिल की गयी, यह पूरा देश देख रहा है।