स्वतंत्र भारत में जिन साम्प्रदायिक व विघटनवादी शक्तियों को कांग्रेस ने लगभग पचास वर्षों तक सत्ता के क़रीब आने का अवसर नहीं दिया वे भले ही ‘कांग्रेस-मुक्त भारत’ की अवधारणा अपने दिल में लिये बैठे हों, परन्तु हक़ीक़त तो यही है कि समयानुसार कांग्रेस पार्टी भी नए कलेवर, नए तेवर व नए नेतृत्व के साथ उभरती नज़र आ रही है। निश्चित रूप से इसी दौरान कांग्रेस कुछ ऐसे स्वार्थी नेताओं की वजह से आंतरिक उथल-पुथल के दौर से भी गुज़र रही है जो सत्ता के भूखे होने के साथ-साथ सिद्धांत व विचार विहीन भी हैं।