मूल विषय पर आने से पहले एक सवाल है। हम कहते हैं कि चुनाव में जाति-धर्म की बात नहीं होनी चाहिए। राजनेता तो यह करते ही हैं, थिंक टैंक समझे जाने वाले संस्थान इसके लिए मसाला तैयार करते हैं। किस जाति-धर्म के कितने प्रतिशत वोटर ने किस पार्टी को वोट दिया, इसके आंकड़े पेश करते हैं। क्या यह लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप है?
मुसलिम वोटः एक अनार, सौ बीमार
- विचार
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- समी अहमद
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- 14 Mar, 2022


समी अहमद
उत्तर प्रदेश के चुनाव नतीजों के बाद यह कहा जा रहा है कि मुसलमानों का वोट बंट गया। इस तरह की शिकायत दूसरे धर्मों-जातियों के वोटरों को लेकर क्यों नहीं की जाती?
अब बात मुसलिम वोटों की जिसकी बहस बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने उत्तर प्रदेश में एक सीट पर सिमट जाने के बाद अपने बयान से की है। उनके मुताबिक जातिवादी मीडिया ने साजिश और प्रायोजित सर्वे और निगेटिव प्रचार के माध्यम से खासकर मुसलिम समाज के लोगों को गुमराह किया।
साथ ही, काफी हद तक यह दुष्प्रचार करने में कामयाब हुआ कि बीएसपी बीजेपी की बी टीम है और समाजवादी पार्टी के मुकाबले कम मजबूती से चुनाव लड़ रही है। मायावती के मुताबिक इसी कारण बीजेपी के अति-आक्रामक मुसलिम विरोधी प्रचार से मुसलिम समाज ने एकतरफा तौर पर सपा को ही अपना वोट दे दिया तथा इससे फिर बाकी बीजेपी-विरोधी हिन्दू लोग भी बसपा में नहीं आये।
साथ ही, काफी हद तक यह दुष्प्रचार करने में कामयाब हुआ कि बीएसपी बीजेपी की बी टीम है और समाजवादी पार्टी के मुकाबले कम मजबूती से चुनाव लड़ रही है। मायावती के मुताबिक इसी कारण बीजेपी के अति-आक्रामक मुसलिम विरोधी प्रचार से मुसलिम समाज ने एकतरफा तौर पर सपा को ही अपना वोट दे दिया तथा इससे फिर बाकी बीजेपी-विरोधी हिन्दू लोग भी बसपा में नहीं आये।