आम चुनाव के अधबीच में भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने कहा कि भाजपा अब पहले से अधिक समर्थ हो गयी है और चुनाव लड़ने के लिए उसे आरएसएस के साथ की ज़रूरत नहीं है। यह सर्वज्ञात है कि अब तक के लगभग सभी चुनावों में आरएसएस के बाल-बच्चों और खुद आरएसएस ने भी भाजपा की जीत के लिए काम किया। इस चुनाव में भाजपा के कमज़ोर प्रदर्शन के बाद आरएसएस के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने चुनाव के दौरान विभिन्न पार्टियों के आचरण पर टिप्पणी की। यद्यपि उन्होंने किसी का नाम नहीं लिए तथापि यह साफ़ था कि उनका इशारा मोदी और भाजपा की ओर है। इसके अलावा, आरएसएस के एक अन्य शीर्ष पदाधिकारी इन्द्रेश कुमार ने भी कहा कि अहंकार के कारण भाजपा की सीटों में कमी आई है। आरएसएस ने तुरंत इस बयान से अपने-आप को दूर कर लिया। फिर इन्द्रेश कुमार ने भी अपना वक्तव्य वापस ले लिया और यह प्रमाणीकृत किया कि भारत केवल मोदी के नेतृत्व में विकास कर सकता है। कई टिप्पणीकारों का कहना है कि भागवत का बयान, संघ और आरएसएस के बीच मनमुटाव और दरार का सूचक है।
भागवत की तल्ख टिप्पणी का मतलब क्या बीजेपी का विरोध है?
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- 23 Jun, 2024

लोकसभा चुनाव में बीजेपी के ख़राब प्रदर्शन के बाद आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने जिस तरह की कड़ी टिप्पणी की है क्या संघ बीजेपी के ख़िलाफ़ हो गया है? जानिए, आख़िर इसके मायने क्या हैं।
भागवत ने आखिर कहा क्या? संघ के एक प्रशिक्षण कार्यक्रम के समापन के अवसर पर उन्होंने कहा कि चुनावों के दौरान गरिमा और हमारे सांस्कृतिक मूल्यों का ख्याल नहीं रखा गया। विपक्ष के साथ विरोधी की तरह व्यवहार किया गया जबकि वह दरअसल प्रतिपक्ष है, जिसकी एक अलग सोच है। उन्होंने यह भी कहा कि शासक दल एवं विपक्षी पार्टियों में एकमत बनाने का प्रयास होना चाहिए। उन्होंने मणिपुर में हिंसा जारी रहने पर भी दुःख प्रकट किया। उन्होंने बढ़ते हुए अहंकार पर भी बात की।