प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब हाल ही में पंजाब की एक रैली में नहीं जा पाए क्योंकि रास्ते में कुछ किसान उनका रास्ता रोके हुए थे तो उन्होंने जाते समय पंजाब सरकार के अधिकारियों से व्यंग्य में कहा, 'अपने सीएम को धन्यवाद कहना कि मैं भटिंडा एयरपोर्ट तक ज़िंदा लौट पाया।'
इस बयान पर दोनों तरह की प्रतिक्रियाएँ हुई हैं। बीजेपी और मोदी समर्थकों ने इस बयान को तूल देते हुए यह दर्शाने की कोशिश की कि प्रधानमंत्री की जान को वाक़ई बड़ा ख़तरा था। उधर मोदी विरोधियों ने पीएम के बयान का ख़ूब मज़ाक़ बनाया कि एक नेता जो ख़ुद को शेर ज़ाहिर करता है, वह इतने कड़े सुरक्षा घेरे के बीच भी ख़ुद को असुरक्षित महसूस करता है।
हमें नहीं मालूम कि प्रधानमंत्री ने यह बयान राजनीतिक कारणों और विक्टिम कार्ड खेलने के लिए दिया था या वे वास्तव में डर गए थे? क्या उनके बयान से हम यह मानें कि उन्हें वास्तव में लगा था कि उनकी जान को ख़तरा है? वह भी इतने ज़बरदस्त सुरक्षा घेरे में? अगर ऐसा है तो यह उनके बारे में व्याप्त इस धारणा को पुख़्ता करता है कि बाहर से बहादुर दिखने के बावजूद मोदी अंदर से एक डरे हुए इंसान हैं।
2002 गुजरात दंगा
मोदी के लिए डरने की बहुत ही पुख़्ता वजह है। उन्हें मालूम है कि देश और दुनिया में कई लोग हैं जो उनको 2002 के गुजरात दंगों के लिए दोषी मानते हैं और उन लोगों में से कम-से-कम सौ-पचास लोग ऐसे होंगे जो उनको दूसरी नज़र से देखते होंगे, ख़ासकर वे लोग जिनके परिजन उन दंगों में मारे गए थे।
प्रतिहिंसा की आग में जल रहे उन लोगों का भय मोदी को उसी तरह सताता होगा जिस तरह किसी को नौकरी से निकालने के बाद उसके नियोक्ता को हमेशा डर लगा रहता है कि कहीं वह बदला तो नहीं लेगा।
प्रधानमंत्री के पास डरने की कोई वजह नहीं है। उनके चारों तरफ़ सुरक्षा की ऐसी अभेद्य दीवार है कि गृह मंत्री की भाषा में कहें तो कोई चिड़िया भी पर नहीं मार सकती। लेकिन भय एक ऐसी मूल प्रवृत्ति है कि वह तर्कों से परे होती है। मसलन हाल के दिनों में किसी को कोरोना हो जाए और वह बहुत अच्छी तरह जानता हो कि कोरोना का यह नया वेरियंट बहुत ही माइल्ड है, फिर भी वह इस ख़्याल से बिल्कुल ही मुक्त नहीं हो सकता कि करोना प्राणघातक है।
इंदिरा, राजीव पर हमला
इसके अलावा प्रधानमंत्री के सामने देश और दुनिया की कई मिसालें हैं जब बड़े-बड़े पदों पर रहने वाले लोग हिंसा के शिकार हुए। गाँधी जी और राजीव गाँधी को छोड़ दें तो इंदिरा गाँधी तो प्रधानमंत्री थीं जब वे मारी गईं।
बेअंत सिंह भी पंजाब के मुख्यमंत्री थे जब उन पर हमला हुआ। इसलिए मोदी सुरक्षा की सात दीवारों के पीछे भी ख़ुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर सकते।
याद कीजिए, इंदिरा गाँधी ने अपनी हत्या से कुछ दिन पहले कहा था कि अगर राष्ट्र की सेवा करते हुए मेरी जान भी चली जाए तो मुझे इसका गर्व होगा।
ऐसे में मोदी ने यह सेल्फ़ गोल क्यों किया, यह समझना मुश्किल है। ख़ासकर इसलिए कि मोदी अपनी हर बात नाप-तौलकर बोलते हैं। हो सकता है कि वे इस बात से नाराज़ थे कि देश का सबसे ताकतवर व्यक्ति होते हुए भी कोई उनका रास्ता रोक सकता है।
अभी कुछ दिनों पूर्व ही उनको तीन किसान क़ानून वापस लेने पड़े थे। उसके बाद यह दूसरी घटना उनके अहंकार पर बहुत बड़ी चोट थी। शायद इस आहत अहंकार के बीच ही उन्होंने ऐसा बयान दे डाला जो उनके गले की हड्डी बन गया है।
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