केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद से ही यह सवाल लगातार पूछा जा रहा है कि क्या देश का मीडिया आज़ाद है? क्या मीडिया को सब कुछ कहने की आज़ादी है? क्या वह सरकार की तीख़ी आलोचना कर सकता है? क्या मीडिया प्रधानमंत्री मोदी की उसी तरह से आलोचना कर सकता है जैसे मनमोहन सिंह के जमाने में की जाती थी? ऐसे आरोप इन दिनों जमकर लगाये जा रहे हैं कि मोदी सरकार बनने के बाद से मीडिया अघोषित आपातकाल से गुज़र रहा है। उसके ऊपर लगातार सरकार का अंकुश रहता है। कभी किसी आलोचक संपादक की छुट्टी हो जाती है तो कभी मीडिया समूह को अचानक सरकार से मिलने वाला विज्ञापन बंद कर दिया जाता है।

वित्त मंत्रालय ने अपने दफ़्तर में सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त पीआईबी पत्रकारों की एंट्री को बैन कर दिया। इस पर काफ़ी हंगामा मचा है। दरअसल, देश की अर्थव्यवस्था की हालत ठीक नहीं है। आर्थिक मसलों से जुड़ी ख़बरों की वजह से सरकार की काफ़ी किरकिरी हो चुकी है। ज़ाहिर है, सरकार नहीं चाहती कि आर्थिक मोर्चे पर उसकी नाकामी जगज़ाहिर हो। लिहाज़ा वित्त मंत्रालय में पत्रकारों की एंट्री ही बैन कर दी गयी।
पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है।