केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद से ही यह सवाल लगातार पूछा जा रहा है कि क्या देश का मीडिया आज़ाद है? क्या मीडिया को सब कुछ कहने की आज़ादी है? क्या वह सरकार की तीख़ी आलोचना कर सकता है? क्या मीडिया प्रधानमंत्री मोदी की उसी तरह से आलोचना कर सकता है जैसे मनमोहन सिंह के जमाने में की जाती थी? ऐसे आरोप इन दिनों जमकर लगाये जा रहे हैं कि मोदी सरकार बनने के बाद से मीडिया अघोषित आपातकाल से गुज़र रहा है। उसके ऊपर लगातार सरकार का अंकुश रहता है। कभी किसी आलोचक संपादक की छुट्टी हो जाती है तो कभी मीडिया समूह को अचानक सरकार से मिलने वाला विज्ञापन बंद कर दिया जाता है।