नरेंद्र मोदी अपने भाषणों और बयानों में अक्सर मिथकीय कथाओं और प्रसंगों का ज़िक्र करते हैं। कोरोना आपदा के समय लोगों का आह्वान करते हुए नरेंद्र मोदी ने कहा था कि महाभारत का युद्ध 18 दिनों में जीता गया था, हम कोरोना से लड़ाई को 21 दिन में जीत लेंगे। हालाँकि, इसके बाद क्या हुआ सबको मालूम है! लेकिन उसी महाभारत के कतिपय धनुर्धर इतने पारंगत थे कि वे छोड़े गए तीर को वापस अपने तरकश में ला सकते थे। नरेंद्र मोदी ने महाभारत के धनुर्धरों की तरह, मंडल पार्ट-2 के तीरों की बौछार की। लेकिन जाति जनगणना के तीर को सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर लौटाना पड़ा। अब सवाल है कि यह तीर क्या मोदी के तरकश में वापस आएगा?

राजनीति में अति पिछड़ी जातियों का इस्तेमाल करने वाली बीजेपी सरकार जाति जनगणना से भाग रही है। इन जातियों का वोट हासिल करके ही केंद्र और राज्य में इतना बड़ा बहुमत मिला है। यूपी में इनकी तादाद 30 से 35 फ़ीसदी मानी जाती है। जाति जनगणना से इनकार के बाद सबसे ज़्यादा धक्का इस जाति समूह को ही पहुँचेगा।
जाहिर है कि मंडल-2 के मसीहा बनने चले नरेंद्र मोदी को अब विपक्षी दलों के राजनीतिक हमलों का सामना करना पड़ेगा। सामाजिक न्याय की धुरी रहे बिहार और यूपी में जाति जनगणना से मोदी सरकार के मुकरने का मुद्दा बनने लगा है। बिहार की राजनीति में उफान आना स्वाभाविक है। दरअसल, जाति जनगणना की मांग को लेकर नीतीश कुमार के नेतृत्व में तेजस्वी यादव, उपेंद्र कुशवाहा सहित बीजेपी, जेडीयू, आरजेडी आदि दलों के पिछड़े नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिला था। गठबंधन टूटने के बाद पहली बार नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने एक साथ आकर किसी मुद्दे को उठाया। इससे बिहार में नई राजनीतिक करवट की संभावनाओं को भी बल मिलने लगा है।
लेखक सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक हैं और लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में असि. प्रोफ़ेसर हैं।