नागरिकों को या तो भान ही नहीं है कि वे भयभीत हैं या फिर उन्होंने किसी और भी बड़े ख़ौफ़ के चलते अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी के सारे डरों को दूसरों के साथ बाँटना भी बंद कर दिया है। ऐसी स्थितियां किस तरह की व्यवस्थाओं में जन्म लेती हैं अभी घोषित होना बाक़ी है।