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जब केजरीवाल आम आदमी थे, उस वक्त का फाइल फोटो।

आप की मुश्किलेंः दिल्ली को बदलने चले केजरीवाल खुद कितना बदले

' मेरा तो कलेजा कांप उठता है, यह सोचकर कि जब दिल्ली की 40% जनता झुग्गियों में रहती है, तब कोई CM कैसे ऐसे आलीशान घर में रह सकता है।'  शीला दीक्षित जी के आधिकारिक आवास में लगे 10 AC के लिए अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि कौन भरता है इन सब का बिल? मैं और आप भरते हैं।  
6 स्टाफ रोड बंगले की हकीकत अब सब के सामने है। खुद को आम आदमी बताकर कभी बंगला और कार नहीं लेने की बात कहकर सत्ता में आए मुख्यमंत्री केजरीवाल के सरकारी आवास में लगे सामान की सूची सार्वजनिक होते ही इसकी भव्यता जानकर सब हैरान हैं। 9 साल तक केजरीवाल इस बंगले में रहे है। मुख्यमंत्री पद त्यागने के बाद यह बंगला खाली करना पड़ा है ।  
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अन्ना हजारे आंदोलन के बाद 2 अक्टूबर 2012 में एक  नयी राजनीतिक पार्टी बनाने की घोषणा कर नए तरह की राजनीति करने के ख्वाब पुरे देश को भी दिखाए गए थे। परिवारवाद  भष्टाचार और साम्प्रदायिकता से मुक्त एक पार्टी की कल्पना ने अधिकाशं उदार विचारधारा के मानने वाली जनता को अपनी और खींचा और भरपूर समर्थन पाया। जड़ भ्रष्ट अलोकतान्त्रिक एकाधिकारवादी राजनीति के विपरीत एक प्रगतिवादी भागीदारी व सुगम कल्याणकारी प्रसाशनिक व्यवस्था आधारित राजनीति को विकल्प के रूप में स्थापित करने के संदेश और लक्ष्य में ढाल कर बनायी आम आदमी पार्टी को केजरीवल ने धीरे धीरे पूरी तरह से अपनी महत्वाकांक्षा के इर्दगिर्द ही समेट लिया ।
जनता के विश्वास ने 2013 के दिल्ली विधानसभा के पहले ही चुनाव में 29.48 % मत और 70 में से 28 सीट पार्टी की झोली में डाल दिए और आम आदमी पार्टी दूसरी बड़ी पार्टी बन कर उभरी। भाजपा को 33 % मत हासिल कर 31 सीट जीती तो कंग्रेस ने भी 24.6 % मत हासिल किये और 8 सीटों पर सिमट गयी थी। बहुजन समाज पार्टी को 5.35 % ही मत मिल सके थे। कांग्रेस के बाहरी समर्थन से केजरीवाल मुख्यमंत्री बने।

भाजपा ने दिल्ली के चारों और बाहरी क्षेत्रों में सफलता हासिल की थी तो आम आदमी ने मध्य दिल्ली के क्षेत्र में अपनी पैठ बनाई। 66 % मतदान हुआ था। 2014 के लोकसभा चुनावों मे दिल्ली की सातों सीटों पर चुनाव लड़ा 32.9 % मत हासिल किये लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। अरविन्द केजरीवाल बनारस से नरेंद्र मोदी के सामने मुकाबले में बुरी तरह मात खा गए।    

2015 में एक साल के राष्ट्रपति शासनकाल के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस के 15 % वोट भी आम आदमी पार्टी की और चले गए और कांग्रेस के पास केवल 9.7 % ही मत रह गए। दिल्ली की जनता ने 54.3 % के बड़े समर्थन से 67 सीट पार्टी की झोली में डाली। भाजपा को केवल 3 सीट ही मिली लेकिन उसका मत 32.3 % रहा।
2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में 53.57% मत आम आदमी पार्टी को मिले लेकिन अबके सीटें कम हो गई। 62 सीटों पर पार्टी ने जीत हासिल की लेकिन भाजपा के मत में लगभग 6.2%(38. 51%) की बढ़ोतरी से सीटों का ग्राफ बढ़ कर 8 पहुँच गया। 2024 के लोकसभा चुनावों में आम  आदमी पार्टी का मत  2019 के मुकाबले 32.9 % से घट कर 24.17% आ गया। दिल्ली विधान सभा चुनावों में अबकी बार आम आदमी पार्टी के कई नेता चिंता में घिरे हुए हैं की कई मुद्दों की वजह से जनता में लोकप्रियता की कमी मत प्रतिशत कितना अंतर डालेगी।   
एक दशक बीत जाने के बाद भी पार्टी को पूरी तरह संरचना में नहीं ढाला गया बल्कि पूरा वर्चस्व केवल एक व्यक्ति केंद्रित ही बना हुआ है। राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए राष्ट्रवाद के समांतर हिंदुत्व की पहचान को निरंतर बनाए रखा गया है। दिल्ली के स्कूल पाठ्यक्रम में देशभक्ति के अध्याय जोड़ने और खुद को हनुमान भक्त घोषित करने के यत्न इसी कड़ी का अंग हैं। विभिन्न सम्प्रदायों को राजनीतिक उद्देश्य के लिए साथ जरूर लिया गया लेकिन धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक सिद्धांत को स्पष्टता से स्थापित करने के लिए गंभीर संघर्ष करने में प्राथमिकता तय नहीं की गई।  
आज आम आदमी पार्टी गंभीर चुनौतियों से जूझ रही है। पार्टी के सामने उन्हीं मूल्यों की चुनौतियां हैं जो एक समय में पार्टी के गठन का आधार बने  थे। राजनीतिक महत्वाकांक्षा लोगों के प्रति प्रतिबद्धता से आगे निकल गई है और कई वादे अधूरे रह गए हैं।यमुना को स्वच्छ नदी बनाने का वादा किया था, लेकिन ऐसा कभी नहीं कर पाए। यमुना नदी अब पहले से भी अधिक प्रदूषित है। हर साल प्रदूषण के कारण दिल्ली की जनता को जो दंश  झेलना पड़ता है उसक कोई स्थाई समाधान  केजरीवाल सरकार अभी तक खोज नहीं पायी।
जो बुनियादी सेवाओं को देने का जोर शोर से प्रचार किया गया था अभी तक वैसी बुनियादी सेवाएं दे पाने के स्तर तक नहीं पहुंच पाए। उपराज्यपाल से तकरार और टकराव के चलते दिल्ली के लोगों को बुनियादी सेवाएं प्रदान करने में भी कठिनाई हो रही है। लोगों के अधिकारों के लिए लड़ने के बजाय  केवल अपने राजनीतिक एजेंडे के लिए लड़ रहे हैं।  
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केजरीवाल के नए बंगले की भव्यता उजागर होने के बाद और बंगले में हुए स्वाति मालीवाल जैसे कई विवाद ,लोक सभा चुनाव में अन्य राज्यों में प्रचार के लिए पंजाब सरकार के हेलीकॉप्टर का उपयोग  हैं, जो लोगों को संदेह में डाल रहे हैं कि क्या अब भी केजरीवाल आम आदमी हैं या नहीं।  यह साफ है कि अगर दिल्ली सरकार अपना अधिकांश समय केंद्र से लड़ने में लगाती रहेगी तो दिल्ली का कुछ नहीं हो सकता। पंजाब के चुनाव में राज्य की तस्वीर बदलने के लिए एक मौका मांग कर सत्ता में आयी आम आदमी पार्टी की हालत किये गए वादे पूरे नहीं कर पाने के चलते कमजोर ही मानी जाने लगी है।  
अपनी राजनीतिक यात्रा दिल्ली के आम लोगों की सेवा करने की प्रतिबद्धता के साथ शुरू करने वाले  और ऐसा करना जारी रखने की कसम उठाने वाले केजरीवाल की प्राथमिकताएं बदलते हुए दिल्ली देख रही है। भाजपा सरकार द्वारा प्रताड़ित किये जाने की सहानुभूति के प्रयोग करने की रणनीति पर चुनाव में केजरीवाल अपना दांव मजबूत करने में लगे हैं।  
राजनीति में बुद्धत्व प्राप्त करने के लिए महत्वाकांक्षा के शीशमहल की कोमल चांदनी नहीं बल्कि त्याग की कड़ी धुप में झुलसना होता है।  
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जगदीप सिंधु
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