कांशीराम जी ने आरम्भ में बामसेफ बनायी जिसकी शुरुआत महाराष्ट्र में हुई और उसके बाद उत्तर भारत में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में फैला। जितनी दलित जातियाँ जुड़ीं लगभग उतने ही पिछड़े भी साथ आये और अल्पसंख्यक वर्ग का भी अच्छा ख़ासा साथ मिला। पहली लोकसभा की सीट बिजनौर से निकली जहाँ पर मुसलमानों ने बढ़-चढ़कर साथ दिया और उसके बाद कुर्मी बाहुल्य क्षेत्र रीवा, मध्य प्रदेश से बुद्ध सेन पटेल जीत कर आए। कांशीराम जी जब वी पी सिंह के ख़िलाफ़ इलाहाबाद से चुनाव में उतरे तो मुख्य सारथी कुर्मी समाज के थे। इस तरह से कहा जा सकता है कि शुरू में जैसा नाम वैसा काम दिखने लगा।
मायावती को ब्राह्मण मिलेगा या नहीं?
- विचार
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- 27 Jul, 2021

मायावती ब्राह्मणों को लुभाने में क्यों लगी हैं? बसपा अगर विचारधारा के अनुसार चली होती तो क्या आज वोट की तलाश में ब्राह्मण के पास पहुँचने की ज़रूरत पड़ती?
एक नारा उन दिनों बहुत गूँज रहा था- पंद्रह प्रतिशत का राज बहुजन अर्थात पचासी प्रतिशत पर है। पार्टी का विस्तार यूपी और पंजाब में इसी अवधारणा के अनुरूप बढ़ा और उसी के प्रभाव से 1993 में समाजवादी पार्टी से यूपी में समझौता हो सका। 1994 में पहली बार जब सुश्री मायावती मुख्यमंत्री बनीं तो बहुजनवाद में संकीर्णता प्रवेश करने लगी। लोग राजनीतिक रूप से कम और सामाजिक रूप से ज़्यादा जुड़े थे। इसलिए उपेक्षित होते हुए भी साथ में लगे रहे। समाज ने यह भी महसूस किया कि अपना मारेगा तो छाँव में। जो भी हो, मरना जीना यहीं है।