इस पोस्टर से शर्मनाक क्या हो सकता है? मनीष गुप्ता की हत्या के बाद मुआवज़े का आभार जताने के लिए जिन लोगों ने यह पोस्टर लगाए हैं उन्हें सोचना चाहिए कि वे समाज और इंसानियत का क्या हाल कर रहे हैं? क्या सत्ता और समृद्धि से संपन्न वैश्य समाज की ये हालत हो गई कि चालीस लाख के मुआवज़े के लिए विधायक और मुख्यमंत्री का आभार प्रकट कर रहे हैं? इससे ज़्यादा तो वैश्य समाज बीजेपी को चंदा देता होगा। वैश्य समाज ने बीजेपी को शुरू से आर्थिक मदद की है। उसकी गिनती कुछ सौ करोड़ में भी नहीं हो सकती। उस समाज के लोग समाज के नाम पर चालीस लाख के मुआवजे के लिए मुख्यमंत्री को आभार दे रहे हैं और पोस्टर लगा रहे हैं?
यह पोस्टर बता रहा है कि अरबों रुपये देकर जिस वैश्य समाज ने आरएसएस और बीजेपी को यहाँ तक लाए उनकी इस पार्टी ने क्या हालत कर दी है।
कानपुर के व्यापारी मनीष गुप्ता की हत्या के सिलसिले में कोई गिरफ़्तारी नहीं हुई। क्या वैश्य समाज के इन नेताओं को इस सवाल के साथ पोस्टर नहीं लगाना था? क्या बीजेपी को यह पोस्टर उतरवा नहीं देना चाहिए?
क्या लोग इतने नासमझ हैं? वे नहीं समझेंगे कि बीजेपी की राजनीतिक मदद के लिए यह पोस्टर लगा है? बीजेपी विपक्ष पर ऐसे मौक़े पर राजनीति का आरोप लगाती है? लेकिन यह पोस्टर क्या कह रहा है? क्या बीजेपी मुआवज़े के लिए आभार वाले इस पोस्टर का समर्थन करेगी?
वैश्य समाज के ये सारे नेता बताएँ कि क्या मामले में इंसाफ़ हो गया है? गिरफ़्तारी हो गई है? क्या समाज के नाम पर बने संगठनों का यही काम रह गया है? कौन लोग हैं जो अपना चेहरा लगाकर मनीष गुप्ता की हत्या पर मुआवज़ा देने की घोषणा पर मुख्यमंत्री का आभार प्रकट कर रहे हैं? हम कहाँ आ गए हैं? क्या हमने वाक़ई सोचना समझना बंद कर दिया है? अपनी सोच समाज और धर्म के नाम पर बने इन संगठनों के यहाँ गिरवी रख दी है?
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