चेतना वाले हर जीव, और ख़ासकर मानव का सहज स्वभाव लगातार ज़्यादा से ज़्यादा आज़ादी पाने का होता है। बौद्धिक जमात इसे प्राप्त करने के लिए अहिंसक विधायी उपाय का सहारा लेती है तो भावना प्रधान जमात इसे हासिल करने के लिए हिंसक, बेढब प्रयास करती है।
आरएसएस आज भी महात्मा गाँधी से थर्राता क्यों है?
- विचार
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- 14 Feb, 2019

गाँधी के सपनों का आदर्श समाज न्याय प्रधान था। संघ के सपनों का आदर्श समाज अपनत्व प्रधान था। यहीं वह टकराव है। कहते हैं विचारों को नहीं मारा जा सकता है और इसीलिए गाँधी के विरोधी उनसे थर्राते हैं।
गाँधी के सपनों का आदर्श समाज न्याय प्रधान था और समाज निर्माण के उनके प्रयास बौद्धिक, अहिंसक और विधायी रहे। दूसरी तरफ़ संघ के सपनों का आदर्श समाज अपनत्व प्रधान था तथा उसके साधन भावनात्मक, उग्र तथा सांगठनिक रहे।
आरएसएस एक सांप्रदायिक संगठन है- सांप्रदायिक यानी किसी ख़ास उपासना पद्धति पर जोर, संगठन यानी सत्ता प्राप्त करने का इच्छुक समूह। गाँधी सामाजिक संत थे- समाज यानी ख़ुद से निर्मित दीर्घकालिक नियमों से प्रतिबद्ध व्यक्तियों का समूह, संत यानी नैतिक बल के बूते लोगों को मनवाने वाला। गाँधी भारत की प्राचीन ऋषि परंपरा के नवीनतम आइकन रहे तो संघ आधुनिक पाश्चात्य राज्यसत्ता का भारतीय संस्करण।