चेतना वाले हर जीव, और ख़ासकर मानव का सहज स्वभाव लगातार ज़्यादा से ज़्यादा आज़ादी पाने का होता है। बौद्धिक जमात इसे प्राप्त करने के लिए अहिंसक विधायी उपाय का सहारा लेती है तो भावना प्रधान जमात इसे हासिल करने के लिए हिंसक, बेढब प्रयास करती है।