देश भर में महिलाएँ आज अपने जीवनसाथी की दीर्घायु के लिए करवा चौथ का व्रत रख रही हैं लेकिन घरेलू राजनीति में आज का दिन ‘कड़वा चौथ’ का दिन साबित हो रहा है। लोकतंत्र के दीर्घायु होने के लिए कोई राजनीतिक दल व्रत रखने के लिए तैयार नहीं है। राजनीति में लोकतंत्र के प्रति व्रती कोई नहीं बनना चाहता। लोकतांत्र कल मरता हो तो आज मर जाए।

महाराष्ट्र की मौजूदा सरकार में भी मराठा हैं, उसके पहले की सरकार में भी थे और जब सूबे में अकेले कांग्रेस की सरकार होती थी तब भी मराठा सत्ता में सर्वोपरि थे, तब मराठों को आरक्षण देने की मांग इतनी बलवती क्यों नहीं थी? अब क्यों है?
बात महाराष्ट्र से शुरू करता हूँ। महाराष्ट्र में इन दिनों मराठा आरक्ष्ण को लेकर आग लगी हुई है। दल विशेष के जनप्रतिनिधियों के घर जलाये जा रहे हैं। सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जा रहा है और सरकार मूकदर्शक बनकर खड़ी हुई है। किसी की समझ में नहीं आ रहा कि इस आंदोलन के अचानक उग्र होने के पीछे कौन है और सरकार का इस आंदोलन को लेकर रवैया क्या है? मराठा आरक्षण आंदोलन से आखिर किसका फायदा और किसका नुकसान होने वाला है।