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बीजेपी से उमा भारती की इतनी 'अपमानजनक' विदाई क्यों?

बीजेपी की 'फायरब्रांड' नेता सुश्री उमा भारती का सितारा आखिर डूब ही गया। वे अब एक ऐसे टूटे परिंदे की तरह हैं जो अब शायद कभी नहीं जुड़ पायेगा। मध्यप्रदेश में बीजेपी को पहली बार सत्तारूढ़ करने वाली उमा भारती को भाजपा के मौजूदा नेतृत्व ने दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेंका है। इतनी अपमानजनक विदाई तो कोई अपने चतुर्थ श्रेणी भृत्य की भी नहीं करता। मुझसे उम्र में एक सप्ताह छोटी उमा भारती की अपमानजनक विदाई को लेकर भाजपा के आम कार्यकर्ताओं का दिल दुखी हो या न हो लेकिन मेरा ह्रदय उमा भारती के लिए द्रवित है।

बुंदेलखंड के डुंडा (टीकमगढ़) में 3 मई 1959  को जन्मी उमा भारती को मैंने उमा भारती बनते देखा है। मात्र कक्षा छह तक की पढ़ाई करने वाली इस सुभद्रा को ईश्वर ने रामकाज के लिए ही बनाया था। मुझे याद है जब किशोरी उमा भारती को लेकर राजमाता विजयाराजे सिंधिया पहली बार ग्वालियर लेकर आयी थीं। उस समय उमा भारती को कोई नहीं जानता था लेकिन जब लोगों ने उनके मुखारविंद से राम कथा सुनी तो अभिभूत हो गयी। बात शायद 1984 के आसपास की रही होगी। राजमाता के संरक्षण में बुंदेलखंड की ये उल्का 1984 के आम चुनाव में भाजपा की ओर से उस खजुराहो सीट से लोकसभा की प्रत्याशी बनाई गयी जहाँ से आजकल भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा सांसद होते हैं।

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उमा भारती ने पहला लोकसभा चुनाव नहीं जीत पायीं लेकिन उनकी पहचान भाजपा के एक उदीयमान नेता के रूप में बन गया। 1989 में फिर लोकसभा चुनाव हुए तो उमा भारती को खजुराहो से भाजपा का उम्मीदवार बनाया गया और उमा भारती ने ये चुनाव प्रचंड बहुमत से जीता। उमा भारती ने संसद में भी अपने आग्नेय भाषणों से अपनी पहचान पूरे देश में बना ली। उमा भाजपा के लिए जादू की पुड़िया साबित हुईं। उमा खजुराहो के लिए अनिवार्य बन गयीं। उन्होंने 1991, 1996, 1998 में यह सीट बरक़रार रखी। 1999 में भाजपा ने उमा को एकदम नयी सीट भोपाल से चुनाव लड़ने भेज दिया। वे भोपाल से भी चुनाव जीत गयीं। साध्वी ऋतम्भरा के साथ उन्होंने राम जन्मभूमि आन्दोलन में प्रमुख भूमिका निभाई। इस दौरान उनका नारा था ‘श्री रामलला घर आयेंगे मंदिर वहीं बनायेंगे’। आज अयोध्या में राम मंदिर तो बन रहा है लेकिन उमा भारती का मन मंदिर उजड़ गया है।

केंद्र में जब भाजपा पहली बार सत्तारूढ़ हुई तो राजमाता के हस्तक्षेप से उमा भारती को वाजपेयी सरकार में मानव संसाधन विकास, पर्यटन, युवा मामले एवं खेल मंत्री बनाया गया। बाद में उन्होंने कोयला और खदान जैसे विभिन्न राज्य स्तरीय और कैबिनेट स्तर के विभागों में कार्य किया। लेकिन एक मंत्री के रूप में उनकी पारी एक सांसद की पारी की तरह चमत्कृत करने वाली नहीं रही। इसका अर्थ ये नहीं कि  उमा भारती का लोहा समाप्त हो गया। उनके भीतर का ताप बरकरार रहा।

मध्यप्रदेश में सत्तारूढ़ होने के लिए 2003 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में, उनके नेतृत्व में भाजपा ने तीन-चौथाई बहुमत प्राप्त किया और मुख्यमंत्री बनीं। भाजपा को सत्तारूढ़ करने में उमा भारती ने जितनी मेहनत की थी उतनी मेहनत भाजपा का कोई मुख्यमंत्री नहीं कर पाया लेकिन उमा भारती का दुर्भाग्य कि अगस्त 2004 में उमा भारती को मात्र 9 महीने बाद ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा।
उमा भारती के खिलाफ 1994 के हुबली दंगों के सम्बन्ध में गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ था और नैतिकता कहती थी कि वे इस्तीफा दें। लेकिन यहीं से उनके साथ गड़बड़ी शुरू हो गयी। भाजपा हाई कमान ने उन्हें अदालती फैसला आने के बाद भी मुख्यमंत्री पद वापस नहीं किया।

स्वभाव से उग्र उमा भारती को नवम्बर 2004 को लालकृष्ण आडवाणी की आलोचना के बाद भाजपा से बर्खास्त कर दिया गया। 2005 में  उमा भारती की बहाली तो हो गयी। उन्हें पार्टी की संसदीय बोर्ड में जगह मिली। लेकिन जब पार्टी ने वादे के मुताबिक उन्हें मुख्यमंत्री बनाने के बजाय उनके प्रतिद्वंदी शिवराज सिंह चौहान को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया तो वे अपमान का ये घूँट नहीं पी सकीं और भाजपा से अलग हो गयीं। उन्होंने भारतीय जनशक्ति पार्टी नाम से एक अलग पार्टी बना ली। यहीं उमा भारती से अपना आकलन करने में पहली बार गलती हुई। उनकी पार्टी चल नहीं पायी। 2008 के विधानसभा चुनाव में उन्हें निराशा हाथ लगी।

मुझे याद है कि लम्बी मौन साधना के बाद अंतत: 7 जून 2011 को उनकी पुनः भाजपा में वापसी हुई। लेकिन अब उनकी जमीन मध्यप्रदेश के बजाय उत्तर प्रदेश में थी। उत्तर प्रदेश में पार्टी की स्थिति सुधारने के लिए उन्होंने ‘गंगा बचाओ’ अभियान चलाया। मार्च 2012 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में वह महोबा जिले की चरखारी सीट से विधानसभा सदस्य चुनी गयीं। वे वर्ष-2014 में झांसी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से 16वीं लोकसभा की सांसद चुनी गईं और उन्हें मोदी मंत्रिमंडल में भारत की जल संसाधन, नदी विकास और गंगा सफाई मंत्री बनाया गया। लेकिन पीएम मोदी से संसदीय जीवन में कम से कम एक दशक वरिष्ठ उमा भारती मोदी के नेतृत्व में चमक नहीं पायीं। उनकी सुस्ती और स्वभाव को पीएम मोदी ने झेला नहीं और जैसे ही मौक़ा मिला उन्हें मंत्रिमंडल से उसी तरह दूध में पड़ी मक्खी की तरह बाहर निकाल फेंका जैसा कि अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनाव से ऐन पहले उन्हें पार्टी के स्टार प्रचारकों की सूची से बाहर किया गया है।

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उमा भारती अब हिमालय की गोदी में हैं। भाजपा ने उन्हें अस्वीकार कर दिया है। उमा भारती का सितारा डूब गया है। अब वे मार्गदर्शक मंडल की लायक भी नहीं रहीं। अब न राम उनके काम आ रहे हैं और न हनुमान जी। सबने उनका साथ छोड़ दिया है क्योंकि आज भाजपा के राम और हनुमान कि लिए वे 'झेलेबुल' नहीं रहीं। भाजपा ने उमा भारती को सक्रिय राजनीति से विदा कर नारी शक्ति की जैसी वंदना की है उसे भाजपा के कार्यकर्ताओं और नेताओं को भी याद रखना चाहिए। क्योंकि आज जो नेता भाजपा के सितारे हैं वे भी कल को उमा भारती की गति को प्राप्त होंगे ही। चार दशक की अपनी राजनीतिक यात्रा में उमा भारती जब शुरू में ध्रुव तारे की तरह चमकती थीं उस समय आज के भाजपा के सूरजों की स्थिति किसी पुच्छल तारे जैसी भी न थी, किन्तु समय का फेर है कि उमा भारती का सितारा डूब गया है।  वे एक टूटे परिंदे की तरह हैं जो शायद अब कभी उड़ ही नहीं पायेगा।  भोपाल के शायर बशीर बद्र ने शायद कभी ये दो शेर उमा भारती के लिए ही लिखे थे -

सन्नाटा क्या चुपके-चुपके कहता है

सारी दुनिया किसका रैन-बसेरा है

आसमान के दोनों कोनों के आख़िर

एक सितारा तेरा है, इक मेरा है

अंडा मछली छूकर जिनको पाप लगे

उनका पूरा हाथ लहू में डूबा है

(राकेश अचल के फ़ेसबुक पेज से)

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राकेश अचल
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